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Saturday, 10 May 2025

Section 70 - Power to summon persons to give evidence and produce documents GST अधिनियम की धारा 70 – समन जारी करने की शक्ति एवं दायित्व

 धारा 70 - गवाही देने और दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए व्यक्तियों को समन करने की शक्ति (Section 70 - Power to summon persons to give evidence and produce documents)


(1) इस अधिनियम के अंतर्गत, उचित अधिकारी (Proper Officer) को यह अधिकार है कि वह किसी भी व्यक्ति को समन (Summon) जारी कर सकता है यदि उसे ऐसा लगता है कि उसकी उपस्थिति किसी जांच (Inquiry) के लिए आवश्यक है। यह समन इस उद्देश्य से हो सकता है कि व्यक्ति:

  • गवाही दे (Give evidence), या

  • कोई दस्तावेज़ या अन्य वस्तु प्रस्तुत करे (Produce document or thing)।

यह समन सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (Code of Civil Procedure, 1908) में दिए गए प्रावधानों के अनुसार होगा, जैसे किसी दीवानी अदालत में होता है।


(1A) [यह उपखंड वित्त अधिनियम, 2024 द्वारा जोड़ा गया है।]

हर ऐसा व्यक्ति जिसे उपखंड (1) के अंतर्गत समन किया गया है, वह:

  • अनिवार्य रूप से उपस्थित होना बाध्य होगा — या तो स्वयं (in person) या अपने अधिकृत प्रतिनिधि (authorised representative) के माध्यम से, जैसा अधिकारी निर्देश दे।

  • उपस्थित होने पर उसे सच बोलना होगा,

  • जांच के दौरान बयान देना होगा,

  • और दस्तावेज़ या अन्य वस्तुएं प्रस्तुत करनी होंगी, यदि मांगी जाएं।


(2) उपखंड (1) में बताई गई हर जांच को ऐसा माना जाएगा कि वह एक "न्यायिक कार्यवाही" (Judicial Proceedings) है —
जिसका अर्थ यह है कि इस जांच के दौरान अगर कोई झूठी गवाही देता है (धारा 193 IPC) या अदालत में अनुचित व्यवहार करता है (धारा 228 IPC), तो उस पर भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत कार्यवाही हो सकती है।


📌 प्रभावी तिथि: 1 जुलाई, 2017 से लागू
📌 उपखंड (1A): 16 अगस्त, 2024 से लागू



old 

The Central Board of Indirect Taxes and Customs (CBIC) has issued a cautionary note regarding fake and fraudulent summons being issued by fraudsters under the guise of GST violations.


Friday, 2 May 2025

इनपुट टैक्स क्रेडिट और रिटर्न मिसमैच पर आधारित प्रमुख GST नियम: Rule 86B, 88C और 88D

Rule 86B – ITC के उपयोग पर प्रतिबंध
नियम:
जब किसी रजिस्टर्ड व्यक्ति का किसी महीने का कर योग्य टर्नओवर ₹50 लाख से अधिक हो, तो वह केवल 99% टैक्स ही ITC से चुका सकता है। 1% नकद में देना ज़रूरी है।
उदाहरण:
ABC ट्रेडर्स का जनवरी 2025 में कुल टैक्सेबल टर्नओवर ₹60 लाख है। उसकी आउटपुट टैक्स देनदारी ₹5 लाख है।
उसने ITC क्रेडिट लेजर में ₹10 लाख जमा कर रखा है।
तो:
ITC से अधिकतम 4,95,000 (₹5 लाख का 99%) का भुगतान कर सकता है
शेष ₹5,000 नकद में इलेक्ट्रॉनिक कैश लेजर से देना अनिवार्य है
छूट की स्थिति:
अगर ABC ट्रेडर्स के मालिक ने पिछले दो सालों में ₹1 लाख से अधिक इनकम टैक्स दिया हो, तो यह 1% नकद भुगतान की बाध्यता नहीं लगेगी।

Rule 88C – GSTR-1 और GSTR-3B में कर में अंतर
नियम:
अगर आपने GSTR-1 में ₹10 लाख की टैक्स देनदारी दिखाई लेकिन GSTR-3B में केवल ₹8 लाख का टैक्स भरा, तो ₹2 लाख का अंतर है।

उदाहरण:
XYZ कंपनी ने GSTR-1 (मार्च 2025) में ₹12 लाख की सप्लाई दिखाई जिस पर टैक्स बनता है ₹2.16 लाख (18%)
लेकिन GSTR-3B में केवल ₹1.16 लाख टैक्स दिखाया गया।

तो:
सिस्टम DRC-01B भेजेगा
XYZ को 7 दिन में या तो ₹1 लाख टैक्स + ब्याज भरना होगा या अंतर स्पष्ट करना होगा
अगर नहीं किया:
Section 73 या 74 के तहत नोटिस आएगा और टैक्स + ब्याज + जुर्माना भरना पड़ सकता है।

Rule 88D – ITC में अंतर (GSTR-3B vs GSTR-2B)
नियम:
अगर GSTR-3B में ₹5 लाख ITC क्लेम किया गया, लेकिन GSTR-2B में केवल ₹4 लाख ITC दिख रहा है, तो ₹1 लाख का अंतर सिस्टम पकड़ेगा।
उदाहरण:
PQR Enterprises ने मार्च 2025 की GSTR-3B में ₹3 लाख ITC क्लेम किया।
GSTR-2B में केवल ₹2 लाख ITC दिखा।

तो:
DRC-01C के Part A में ₹1 लाख का अंतर दिखा कर सूचना भेजी जाएगी
7 दिन में या तो ₹1 लाख + ब्याज का भुगतान करें या कारण बताएं
अगर उत्तर नहीं दिया:
Section 73 या 74 के अंतर्गत टैक्स रिकवरी की प्रक्रिया शुरू हो सकती है।

Saturday, 26 April 2025

केंद्र सरकार ने लग्जरी वस्तुओं पर TCS लागू किया

Government ने आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 206C(1F)(ii) के तहत एक नई अधिसूचना जारी की है।
22 अप्रैल 2025 से, कुछ विशिष्ट लग्जरी वस्तुओं की बिक्री पर स्रोत पर कर (TCS) लागू कर दिया गया है, यदि एकल खरीदारी का मूल्य 10 लाख रुपये से अधिक हो।
किन वस्तुओं पर लगेगा TCS?
कलाई घड़ियाँ (Rolex, Omega आदि)
कला वस्तुएं (पेंटिंग, मूर्तियां, एंटीक पीस)
कलेक्टिबल आइटम (दुर्लभ सिक्के, पुराने डाक टिकट)
नावें और हेलीकॉप्टर (यॉट, कैनो आदि)
हाई-एंड धूप के चश्मे
डिजाइनर बैग व पर्स
लग्जरी जूते
स्पोर्ट्स गियर (गोल्फ किट, स्कीइंग उपकरण)
प्रीमियम होम थिएटर सिस्टम
घोड़े (पोलो/घुड़दौड़ हेतु)


मुख्य बातें:
TCS खरीदार से वसूला जाएगा, जिसे विक्रेता सरकार को जमा करेगा।
खरीदार इस TCS को अपनी आयकर रिटर्न (ITR) में समायोजित कर सकते हैं।

लागू तिथि: 22 अप्रैल 2025 से।


सरकार का उद्देश्य:
काले धन पर रोक लगाना
बड़े लेनदेन में पारदर्शिता लाना
कर संग्रह में वृद्धि करना

खास सलाह:
बिल और TCS प्रमाण पत्र सुरक्षित रखें और ITR में दावा करना न भूलें।
जानकारी के लिए अपने टैक्स कंसलटेंट से संपर्क करें।
Regard
Adv Sarfaraj Ansari

CBIC notifies GSTAT(Procedure) Rules, 2025

CBIC ने 24 अप्रैल 2025 को GSTAT (Procedure) Rules, 2025 को अधिसूचित किया है। यह नियम GST Appellate Tribunal (GSTAT) की कार्यप्रणाली और प्रक्रिया को व्यवस्थित करने के लिए बनाए गए हैं। 

GSTAT (Procedure) Rules, 2025 
1. उद्देश्य और प्रारंभ
इन नियमों का उद्देश्य GST Appellate Tribunal (GSTAT) की प्रक्रिया, कार्यप्रणाली और अपील संबंधी व्यवस्थाओं को तय करना है।
ये नियम 24 अप्रैल 2025 से लागू माने जाएंगे।
2. अपील की फाइलिंग
अपील GSTN Portal (GSTAT Module) के ज़रिए ऑनलाइन ही फाइल की जाएगी।
अपील एक निर्धारित फॉर्मेट में दाखिल करनी होगी जिसमें सभी आवश्यक दस्तावेज संलग्न करने होंगे।
अपील के साथ प्रमाणित प्रतियां (certified copies) लगाना अनिवार्य है।
3. कार्यप्रणाली और सुनवाई का समय
GSTAT की बैठकों का समय आम तौर पर:
सुबह: 10:30 बजे – 1:30 बजे
दोपहर: 2:30 बजे – 4:30 बजे
कार्यालय का समय: सुबह 9:30 बजे – शाम 6:00 बजे
4. Bench का गठन और कार्य
GSTAT में Principal Bench और State Benches दोनों होंगे।
प्रत्येक Bench में Judicial और Technical Members होंगे।
सुनवाई की प्रक्रिया न्यायोचित और समयबद्ध होगी।
5. Registrar की भूमिकाएं
अपीलों का पंजीकरण, दस्तावेज़ों की छानबीन, सुनवाई के लिए सूची तैयार करना आदि कार्य Registrar की ज़िम्मेदारी है।
6. सुनवाई और आदेश
अपीलकर्ता और प्रतिवादी दोनों को सुनने का पूरा अवसर दिया जाएगा।
सुनवाई में यदि कोई पक्ष उपस्थित नहीं होता तो Tribunal अपने विवेक से एकतरफा निर्णय ले सकता है।
आदेश पर हस्ताक्षर और तारीख़ दर्ज करना अनिवार्य है।
7. अन्य प्रावधान
अतिरिक्त दस्तावेज या साक्ष्य केवल विशेष परिस्थितियों में स्वीकार किए जाएंगे।
भाषा: दस्तावेज अंग्रेज़ी में होने चाहिए या प्रमाणिक अनुवाद के साथ दाखिल करें।
हर अपील के साथ संबंधित आदेश की प्रमाणित प्रति जरूरी होगी।

GSTAT (Procedure) Rules, 2025 के कुछ  नियमों (Rules) को अध्याय अनुसार प्रस्तुत किया गया है:

अध्याय I – प्रारंभिक (Preliminary)
Rule 1: संक्षिप्त नाम और प्रारंभ
नियमों को “Goods and Services Tax Appellate Tribunal (Procedure) Rules, 2025” कहा जाएगा।
ये नियम 24 अप्रैल 2025 से लागू माने जाएंगे।

Rule 2: परिभाषाएँ
इसमें “Appellate Tribunal”, “Authorised Representative”, “GSTAT Portal”, “Principal Bench”, “Certified Copy” आदि की परिभाषाएँ दी गई हैं।

अध्याय II – प्रशासनिक प्रावधान
Rule 14: समय विस्तार की शक्ति
Tribunal, उचित कारण होने पर किसी भी प्रक्रिया में निर्धारित समय को बढ़ा सकता है।

Rule 15: रजिस्ट्रार की शक्तियाँ और कार्य
अपीलों का पंजीकरण, नोटिस जारी करना, दस्तावेज़ों का निरीक्षण, रिकॉर्ड बनाना आदि रजिस्ट्रार की जिम्मेदारी है।

Rule 16: स्थगन (Adjournment)
सामान्यतः स्थगन संबंधित बेंच के समक्ष किया जाएगा, पर विशेष स्थिति में रजिस्ट्रार स्थगन दे सकता है।

Rule 17: अध्यक्ष की शक्तियों का हस्तांतरण
अध्यक्ष कुछ कार्य उपाध्यक्ष या अन्य रजिस्ट्रार/अधिकारियों को सौंप सकते हैं।

अध्याय III – अपीलों की स्थापना
Rule 18: अपील दाखिल करना
अपील केवल GSTAT Portal पर ऑनलाइन की जाएगी।
अपील स्पष्ट पैराग्राफों में होनी चाहिए, जिसमें पक्षकारों का नाम, पता, GSTIN आदि हो।
एक ही आदेश के खिलाफ एक अपील पर्याप्त है। संयुक्त अपील मान्य नहीं है।

Rule 19: अपील प्रस्तुत करने की तारीख
रजिस्ट्रार अपील फॉर्म पर प्रस्तुत करने की तिथि अंकित करेगा।

अध्याय IV – कारण सूची (Cause List)
Rule 38: दैनिक कारण सूची तैयार करना
प्रत्येक कार्य दिवस के अंत में अगली दिन की सूची जारी की जाएगी।
प्राथमिकता: आदेश का उच्चारण, स्पष्टीकरण, प्रवेश आदि।

अध्याय V – नोटिस और संचार
Rule 40: नोटिस की सेवा
नोटिस GSTAT Portal व Section 169 के अनुसार भेजे जाएंगे।

अध्याय VI – दस्तावेजों की जांच
Rule 67: निरीक्षण हेतु आवेदन
रिकॉर्ड निरीक्षण हेतु ₹5000 शुल्क के साथ आवेदन देना होगा।

अध्याय VII – रजिस्टरों का रख-रखाव
Rule 59: रजिस्टरों की सूची
तीन प्रकार के रजिस्टर होंगे:
बिना नंबर वाली अपीलें (GSTAT-CDR-03)
अपीलें और याचिकाएं (GSTAT-CDR-04)
मध्यवर्ती आवेदन (GSTAT-CDR-05)

अध्याय X – शपथपत्र (Affidavits)
Rules 78–83:
शपथपत्र निर्धारित प्रारूप में होना चाहिए।
अशिक्षित या दृष्टिहीन व्यक्ति की स्थिति में विशेष प्रमाणन आवश्यक।

अध्याय XI – दस्तावेजों का खुलासा और वापसी
Rule 84: दस्तावेज़ों की माँग
Civil Procedure Code के अनुसार दस्तावेज़ों की मांग की जाएगी।
अध्याय XIV – इलेक्ट्रॉनिक कार्यवाही
Rule 115: इलेक्ट्रॉनिक फाइलिंग
सभी अपीलें, दस्तावेज़, सुनवाई आदि GSTAT Portal पर ही होंगी।
सुनवाई फिजिकल या वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग दोनों रूपों में हो सकती है।

अध्याय XV – विविध (Miscellaneous)
Rule 119: फीस
₹5000 आवेदन शुल्क (निरीक्षण, मध्यवर्ती आवेदन आदि के लिए)।
Rule 120: खर्चे का आदेश
Tribunal एक पक्ष को दूसरे के कानूनी खर्चे देने का आदेश दे सकता है।

Tuesday, 22 April 2025

Courts & SROs Must Report To Income Tax Authorities If Suits/Deeds Mention Cash Transactions Above ₹2 Lakh


नकद लेनदेन ₹2 लाख से ज़्यादा होने पर कोर्ट और सब-रजिस्ट्रार ऑफिस (SRO) को इनकम टैक्स विभाग को जानकारी देनी होगी

सुप्रीम कोर्ट का फैसला:
सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश दिया है कि अगर किसी मुकदमे (सूट) या दस्तावेज़ (जैसे बिक्री विलेख) में ₹2 लाख या उससे ज़्यादा की नकद लेन-देन का ज़िक्र होता है, तो कोर्ट और सब-रजिस्ट्रार ऑफिस को यह जानकारी संबंधित इनकम टैक्स विभाग को अनिवार्य रूप से देनी होगी। यह आदेश आयकर अधिनियम की धारा 269ST को लागू करने के उद्देश्य से दिया गया है।

1. कोर्ट की ज़िम्मेदारी:
अगर किसी सिविल मुकदमे में कहा गया है कि ₹2 लाख या उससे ज़्यादा नकद में भुगतान हुआ है, तो उस कोर्ट को संबंधित आयकर अधिकारी को इसकी सूचना देनी होगी।

2. सब-रजिस्ट्रार की ज़िम्मेदारी:
जब कोई व्यक्ति दस्तावेज़ रजिस्ट्री कराने आता है (जैसे जमीन या संपत्ति की बिक्री), और उसमें नकद भुगतान ₹2 लाख या उससे ज़्यादा का उल्लेख है, तो सब-रजिस्ट्रार को इसकी सूचना तुरंत आयकर विभाग को देनी होगी।

3. अनदेखी करने पर कार्रवाई:
अगर कोई अधिकारी यह रिपोर्ट नहीं करता, तो उस पर राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के मुख्य सचिव द्वारा अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।

धारा 269ST के अनुसार:
नकद में ₹2 लाख या उससे अधिक लेना निषिद्ध है यदि:
यह एक ही लेन-देन में हो,
एक व्यक्ति से एक दिन में हो,
या किसी एक आयोजन/घटना से जुड़ा हुआ हो।
उल्लंघन करने पर आयकर अधिनियम की धारा 271DA के तहत जितनी राशि नकद ली गई हो, उतनी ही पेनल्टी लग सकती है।
यह निर्णय काले धन पर रोक लगाने और नकद लेन-देन की पारदर्शिता बढ़ाने के लिए एक बड़ा कदम माना जा रहा है! 

Friday, 18 April 2025

लेट GST रिटर्न पर लेट फीस और सामान्य दंड दोनों नहीं लग सकते: मद्रास हाईकोर्ट का अहम निर्णय(मामला: Tvl. Jainsons Castors & Industrial Products बनाम Assistant Commissioner (ST))

मद्रास उच्च न्यायालय का निर्णय
मामला: Tvl. Jainsons Castors & Industrial Products बनाम Assistant Commissioner (ST)
निर्णय दिनांक: 4 फरवरी 2025
न्यायाधीश: माननीय श्री न्यायमूर्ति कृष्णन रामासामी
विवरण: W.P. No. 36614 of 2024

🔍 मामले की पृष्ठभूमि:
याचिकाकर्ता ने वार्षिक GST रिटर्न (धारा 44 के अंतर्गत) देर से दाखिल किया था।
प्रशासनिक अधिकारी ने याचिकाकर्ता पर:
लेट फीस (धारा 47 के तहत) ₹1,12,000/- और
सामान्य दंड (धारा 125 के तहत) ₹50,000/- (₹25,000/- CGST + ₹25,000/- SGST) लगाया।

⚖️ याचिकाकर्ता की दलील:
धारा 47 विशेष रूप से देर से रिटर्न दाखिल करने के लिए लेट फीस का प्रावधान करती है।
धारा 125 केवल उन मामलों में लागू होती है जहाँ किसी विशिष्ट उल्लंघन के लिए अलग से दंड निर्धारित नहीं है।
चूंकि देर से रिटर्न दाखिल करने के लिए पहले से ही धारा 47 में प्रावधान है, इसलिए धारा 125 के तहत अतिरिक्त दंड लगाना अनुचित है।
इसके अतिरिक्त, धारा 46 के तहत कोई पूर्व सूचना (notice) नहीं दी गई थी, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।

🏛️ न्यायालय का निर्णय:
1. लेट फीस (धारा 47):
न्यायालय ने माना कि देर से रिटर्न दाखिल करने पर लेट फीस लगाना वैध है।
धारा 47(2) के अनुसार, वार्षिक रिटर्न देर से दाखिल करने पर ₹100 प्रति दिन की दर से लेट फीस लगाई जा सकती है, जो अधिकतम राज्य में टर्नओवर के 0.25% तक सीमित है।

2. सामान्य दंड (धारा 125):
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जब किसी उल्लंघन के लिए विशेष दंड का प्रावधान (जैसे धारा 47) मौजूद है, तो उसी उल्लंघन के लिए धारा 125 के तहत सामान्य दंड नहीं लगाया जा सकता।
अतः, धारा 125 के तहत लगाया गया ₹50,000/- का दंड रद्द कर दिया गया।

✅ निष्कर्ष:
केवल लेट फीस (धारा 47 के तहत) वैध है।
सामान्य दंड (धारा 125 के तहत) उसी उल्लंघन के लिए नहीं लगाया जा सकता जब विशेष दंड का प्रावधान मौजूद हो।

Can both Late Fee and Penalty be levied on delay in filing of GST Returns? 🔉

In a notable judgment, the Madras High Court, in the case of Tvl. Jainsons Castors & Industrial Products vs. The Assistant Commissioner (ST), has ruled that taxpayers cannot be charged both a late fee and a general penalty for delayed filing of GST returns.

Key Highlights of the Ruling:

🔹Late Fee (Section 47, TNGST Act, 2017): Applicable for delays in filing GST returns.

🔹General Penalty (Section 125): Cannot be levied when a specific provision like Section 47 already addresses the default.


Government of India – CBIC Instruction No. 03/2025: Standardized and Simplified GST Registration Guidelines

GST पंजीकरण से संबंधित – Instruction No. 03/2025-GST
(दिनांक: 17 अप्रैल 2025)
जारीकर्ता: CBIC (GST Policy Wing)

Download here
Instructions for processing of applications for GST registration


1. उद्देश्य और पृष्ठभूमि
पंजीकरण प्रक्रिया में आवेदकों को गैर-ज़रूरी दस्तावेज़ और जानकारी मांगकर परेशान किया जा रहा है।
अधिकारियों को एकसमान, स्पष्ट और पारदर्शी दिशा-निर्देश देने के लिए यह निर्देश जारी किया गया है।
फर्जी फर्मों को रोकना ज़रूरी है, लेकिन ईमानदार आवेदकों के साथ कोई भी असुविधा नहीं होनी चाहिए।

2. दस्तावेज़ों की जांच से संबंधित निर्देश
मुख्य व्यवसाय स्थल (Principal Place of Business - PPOB)
(i) खुद की जगह (Owned Premises):
एक वैध दस्तावेज़ जैसे प्रॉपर्टी टैक्स रसीद / बिजली बिल / पानी बिल या स्थानीय निकाय द्वारा मान्य दस्तावेज़ ही पर्याप्त हैं।
किसी मूल प्रति (original physical copy) की मांग नहीं की जाएगी।
(ii) किराए/लीज़ की जगह (Rented/Leased Premises):
अगर एग्रीमेंट रजिस्टर्ड है, तो:
Rent Agreement + एक मालिकाना दस्तावेज पर्याप्त है।
Lessor (मालिक) का ID proof नहीं मांगा जाएगा।
अगर एग्रीमेंट रजिस्टर्ड नहीं है, तो:
Rent Agreement + एक मालिकाना दस्तावेज + मालिक का ID Proof देना होगा।
अगर बिजली/पानी का बिल आवेदक के नाम पर है, तो वो + एग्रीमेंट ही पर्याप्त हैं।
(iii) सहमति आधारित स्थल (Consent-based Premises):
Plain paper पर Consent Letter
Consenter का ID proof
Consenter की संपत्ति का कोई एक दस्तावेज़
ये तीनों मिलकर प्रमाण के लिए पर्याप्त हैं।
(iv) साझा स्थल (Shared Premises):
Rent Agreement हो या Consent Letter, ऊपर बताए अनुसार दस्तावेज़ लागू होंगे।
(v) बिना Rent Agreement वाले स्थल:
न्यायिक शपथ पत्र (Non-Judicial Stamp Paper पर, Magistrate या Notary के सामने)
ऐसा दस्तावेज़ जो कब्जा साबित करता हो (जैसे बिजली बिल)
(vi) SEZ में कार्यालय:
भारत सरकार द्वारा जारी SEZ प्रमाणपत्र / दस्तावेज़ संलग्न करना होगा।

3. व्यापार के स्वरूप (Constitution of Business)
(i) Partnership Firm:
सिर्फ Partnership Deed ही पर्याप्त।
कोई भी अन्य दस्तावेज़ (जैसे Udyam/MSME/Shop License) की मांग न की जाए।
(ii) अन्य संस्थाएं (Trust, Society, Govt Body आदि):
केवल उनका रजिस्ट्रेशन प्रमाणपत्र ही मांगा जाए।

4. अनावश्यक और अनुमान आधारित प्रश्नों पर रोक
अधिकारियों को ये नहीं पूछना चाहिए:
कि आवेदक या अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता की रिहायश किसी और शहर/राज्य में क्यों है।
कि HSN कोड राज्य में प्रतिबंधित है या नहीं।
कि दिए गए पते पर ऐसा व्यवसाय संभव नहीं।
केवल वास्तविक दस्तावेज़ों के आधार पर ही प्रश्न पूछे जाएं।

5. आवेदन की समय-सीमा और प्रोसेसिंग
(i) यदि आवेदन पूरा है और risky नहीं है:
7 कार्यदिवस में पंजीकरण स्वीकृत करें।
(ii) अगर Aadhaar authentication नहीं हुआ या आवेदक ‘Risky’ है:
30 दिन में, लेकिन पहले physical verification अनिवार्य।
(iii) Physical Verification की स्थिति में:
REG-30 में रिपोर्ट + फोटो कम से कम 5 दिन पहले अपलोड होनी चाहिए।
GPS-enabled फोटो और दस्तावेज़ शामिल करें।
यदि jurisdiction अलग है, तो आवेदन तत्काल स्थानांतरित किया जाए।

6. कब और कैसे सूचना/स्पष्टीकरण मांगे जाएं (REG-03):
इन स्थितियों में ही REG-03 नोटिस भेजें:
दस्तावेज़ अस्पष्ट या अधूरे हों
पता मेल न खा रहा हो
PAN से जुड़े GSTIN पहले रद्द/निलंबित हों

उत्तर REG-04 में 7 दिन में मांगा जाए।
यदि उत्तर संतोषजनक हो: 7 दिन में रजिस्ट्रेशन स्वीकृत करें
उत्तर अस्वीकार्य हो: REG-05 के ज़रिए अस्वीकृति जारी करें
उत्तर न मिले: 7 दिन बाद आवेदन अस्वीकृत करें

7. वरिष्ठ अधिकारियों के लिए निर्देश
Zonal Officers समय-समय पर समीक्षा करें
नियमों का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई
पर्याप्त स्टाफ की तैनाती सुनिश्चित की जाए
ज़रूरत के अनुसार स्थानीय व्यापार नोटिस जारी करें

Summary in tabular form of the key points from Instruction No. 03/2025-GST dated 17th April 2025, regarding processing of applications for GST registration:


 


Tuesday, 15 April 2025

GST में "Bill to Ship to" मॉडल एक विस्तृत व्यावसायिक व्यवस्था और कानूनी विश्लेषण

 "Bill to Ship to" Model under GST


1. परिभाषा (Definition):

“Bill to Ship to” मॉडल वह व्यवस्था है जिसमें माल की आपूर्ति भले ही एक व्यक्ति को की जा रही हो, परंतु भेजा वह किसी अन्य व्यक्ति को जा रहा हो। इसमें एक सप्लायर, एक खरीदार (जो बिल करवाता है) और एक रिसीवर (जिसे माल भेजा जाता है) होता है।


⚖️ 2. कानूनी प्रावधान (Legal Provision):

Section 10(1)(b) – IGST Act, 2017:

"जहाँ किसी थर्ड पार्टी के निर्देश पर सप्लायर द्वारा माल किसी तीसरे व्यक्ति को भेजा जाता है, तो ऐसा माना जाएगा कि थर्ड पार्टी को ही माल सप्लाई किया गया है और Place of Supply वही होगा जहाँ थर्ड पार्टी का प्रिंसिपल प्लेस ऑफ बिजनेस है।"

मुख्य बिंदु:

  • तीन पार्टी होती हैं: Supplier, Bill-to पार्टी, Ship-to पार्टी

  • सप्लाई मान ली जाती है Bill-to पार्टी को

  • GST की दृष्टि से दो सप्लाइज़ मानी जाती हैं


🔷 3. सैद्धांतिक ढांचा (Theoretical Framework):

तत्वविवरण
Supplierजो वस्तु सप्लाई कर रहा है
Bill To Partyजो वस्तु खरीद रहा है (वास्तविक ग्राहक)
Ship To Partyजिसे वस्तु डिलीवर की जा रही है (अक्सर ग्राहक का ग्राहक)
Place of SupplyBill To पार्टी के लोकेशन के आधार पर निर्धारित होता है

🔶 4. ट्रांजैक्शन के प्रकार (Nature of Supply):

सप्लायरखरीदाररिसीवरसप्लाई का प्रकारलागू कर
राजस्थानराजस्थानगुजरातBill To पार्टी (राजस्थान) के अनुसार Intra-stateCGST + SGST
राजस्थानगुजरातगुजरातBill To पार्टी (गुजरात) के अनुसार Intra-stateCGST + SGST
गुजरातराजस्थानपंजाबInter-stateIGST

⚠️ माल भले ही एक राज्य से दूसरे राज्य जाए, अगर सप्लायर और बिलिंग पार्टी एक ही राज्य में हैं तो सप्लाई Intra-state मानी जाएगी।


📊 5. विस्तृत उदाहरण (Advanced Example with Numbers):

पार्टी विवरण:

  • A Ltd. (Supplier): अजमेर, राजस्थान

  • B Ltd. (Bill To): जयपुर, राजस्थान

  • C Ltd. (Ship To): अहमदाबाद, गुजरात

माल का मूल्य: ₹1,00,000
GST दर: 18%

🧾 Tax Invoice by A Ltd. (to B Ltd.):

  • Bill to: B Ltd., Jaipur

  • Ship to: C Ltd., Ahmedabad

  • Tax: CGST ₹9,000 + SGST ₹9,000

  • Total Invoice: ₹1,18,000

🧾 Tax Invoice by B Ltd. (to C Ltd.):

  • Tax: IGST ₹18,000

  • Total Invoice: ₹1,18,000


📜 6. आवश्यक दस्तावेज़ (Documentation Required):

दस्तावेज़विवरण
Tax Invoice"Bill to" और "Ship to" दोनों का स्पष्ट उल्लेख
E-Way Bill"Dispatch From", "Ship To", "Bill To", "Invoice No." स्पष्ट रूप से लिखें
Transport Documentजैसे लोरी रसीद (LR), जिसमें delivery address सही हो
Purchase Order Copyऑर्डर की स्पष्ट chain को समझने के लिए

💼 7. व्यापारिक उपयोग के केस (Real-World Use Cases):

  1. Distributors/Stockists: बड़ी कंपनियां डिस्ट्रीब्यूटर को सामान भेजती हैं, लेकिन माल सीधे रिटेलर को भेजा जाता है।

  2. E-Commerce: Amazon, Flipkart आदि में बिलिंग कंपनी होती है और माल ग्राहक को भेजा जाता है।

  3. Job Work/Third Party Manufacturing: Principal manufacturer के निर्देश पर माल Job worker को भेजा जाता है।

  4. Exports: एक व्यापारी विदेशी पार्टी को माल बेचता है लेकिन माल directly port या logistic provider को भेजा जाता है।


📋 8. Bill to Ship to vs Third Party Billing – भ्रम न करें:

प्रकारउद्देश्यसप्लाई का आधारPlace of Supply
Bill to Ship toतीसरे व्यक्ति के निर्देश पर माल भेजनाSection 10(1)(b)Bill to पार्टी
Third Party Billingकमीशन एजेंट, intermediarySection 2(93), agentActual delivery party

⚠️ 9. ध्यान देने योग्य बातें (Important Considerations):

  • सही तरीके से GSTIN और Address Invoice और E-way bill में लिखें

  • Delivery Proof रखें (POD, LR Copy, Delivery Challan)

  • GSTR-1 और GSTR-3B में दोनों सप्लाइज़ को अलग-अलग रिपोर्ट करें

  • Cross-state सप्लाई में mismatches से बचें


📌 10. निष्कर्ष (Conclusion):

Bill to Ship to” एक ऐसा प्रावधान है जो GST कानून को व्यवहारिक वास्तविकताओं के अनुकूल बनाता है। यह व्यापारियों को लॉजिस्टिक लागत घटाने, माल की तेज डिलीवरी, और क्लियर टैक्स अनुपालन की सुविधा देता है।

कानूनी समर्थन: Section 10(1)(b) – IGST Act
लाभ: Cost saving, simplicity, documentation clarity

उपयोग: Supply chain, third party orders, e-commerce, manufacturing 

Wednesday, 9 April 2025

Delhi High Court Ruling: Refund Cannot Be Withheld Merely by Invoking Section 54(11) Without Pending Appeal – Shalender Kumar vs Commissioner Delhi West CGST

केस (Shalender Kumar vs Commissioner Delhi West CGST) में दिल्ली हाई कोर्ट ने साफ कहा है कि अगर कोई अपील या कार्यवाही लंबित नहीं है, तो विभाग केवल Section 54(11) के तहत "राय बनाने" भर से रिफंड नहीं रोक सकता।



1. केस का नाम और निर्णय की तारीख
Shalender Kumar vs Commissioner Delhi West CGST
फैसले की तारीख: 3 अप्रैल, 2025
कोर्ट: दिल्ली हाई कोर्ट
वकील:
याचिकाकर्ता (Petitioner) की ओर से – Mr. Sidhant Sarwal, Advocate
विभाग (Respondents) की ओर से – Mr. Gibran Naushad और अन्य

2. मुख्य मुद्दा (Legal Issue)

क्या विभाग केवल Section 54(11) के तहत "opinion" बनाकर GST रिफंड रोक सकता है, जब कोई अपील या कार्यवाही लंबित ही नहीं है?

3. केस के तथ्य (Facts of the Case)

Dec 2022: Shalender Kumar ने FMCG exports पर रिफंड क्लेम किया।
June 2023: विभाग ने नोटिस जारी किया – आरोप था कि सप्लायर्स के GSTIN रद्द हो चुके हैं।
Sep 2023: Adjudicating Authority ने ₹15.15 लाख का रिफंड रिजेक्ट कर दिया।
Jan 2024: Appellate Authority ने फैसला याचिकाकर्ता के पक्ष में दिया और रिफंड स्वीकृत कर दिया।
July 2024: विभाग ने Review Order पारित किया (Section 112(3) के तहत)।
Jan 2025: विभाग ने Section 54(11) के तहत रिफंड रोक दिया – कहा "शायद नुकसान होगा"।
Apr 2025: याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाई कोर्ट में रिट फाइल की।

4. याचिकाकर्ता की दलीलें (Petitioner’s Arguments)
Appellate Authority का आदेश वैध है, उस पर कोई stay या appeal नहीं है।
विभाग सिर्फ रिफंड रोकने के लिए Section 54(11) का गलत इस्तेमाल कर रहा है।
कोई वैधानिक कार्यवाही लंबित नहीं, तो रिफंड रोका नहीं जा सकता।

5. विभाग की दलीलें (Department’s Arguments)
हमने Section 54(11) के तहत opinion दी कि मालफ़ीसेंस (fraud) हुआ है।
हम GST Appellate Tribunal चालू होते ही appeal करेंगे, इसलिए रिफंड रोकना ज़रूरी है।

6. कोर्ट का निर्णय (High Court’s Judgment)
सिर्फ Section 54(11) की opinion से रिफंड नहीं रोका जा सकता जब तक:
1. कोई अपील या कार्यवाही लंबित न हो, और
2. opinion विधिक और ठोस कारणों पर आधारित न हो।

Appellate Order valid और binding है – जब तक उस पर appeal या stay न हो जाए।
विभाग केवल “appeal करने का इरादा” रखता है, इसका मतलब ये नहीं कि रिफंड रोका जा सकता है।
विभाग को आदेश दिया गया कि:

2 महीने के अंदर रिफंड + ब्याज (Section 56 के अनुसार) जारी करे।
भविष्य में appeal करने पर उसका अलग से विचार होगा।

7. केस में दिए गए Precedents (पूर्व निर्णयों का हवाला)
G.S. Industries vs CGST Delhi West: Refund allowed; appellate order respected
Brij Mohan Mangla vs Union of India: Refund नहीं रोका जा सकता सिर्फ appeal के इरादे से

8. मुख्य निष्कर्ष (Key Takeaways)
✅ Appellate Authority द्वारा स्वीकृत रिफंड valid है जब तक उसे चुनौती न दी जाए।
❌ सिर्फ शक या इरादा काफी नहीं — रिफंड रोकना तभी वैध है जब अपील लंबित हो।
⚖️ Section 54(11) तभी लागू होगा जब opinion के साथ कोई proceeding भी pending हो।
⏳ अगर रिफंड रोका गया हो और गलत तरीके से हो, तो ब्याज भी देना होगा (Section 56)।

Refunds को finality के सिद्धांत के तहत मान्यता दी जानी चाहिए।


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     Advocate  Sarfaraj Ansari 
       
(Practice- Tax Litigation & Return Compliance Work )
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Contact No-8545873214

Saturday, 5 April 2025

मृत व्यक्ति पर जीएसटी मांग अवैध: कानूनी उत्तराधिकारी को नोटिस देना अनिवार्य – इलाहाबाद हाईकोर्ट"(केस: अमित कुमार सेठिया (मृतक) बनाम उत्तर प्रदेश राज्य)

केस: अमित कुमार सेठिया (मृतक) बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
न्यायालय – इलाहाबाद उच्च न्यायालय
निर्णय दिनांक – 02 अप्रैल 2025
न्यायपीठ – डिवीजन बेंच
संदर्भ संख्या – [(2025) 4 TMI 238 :: 2025:AHC:45317-DB]

मामले की पृष्ठभूमि:
अमित कुमार सेठिया, जो एक पंजीकृत करदाता थे, का निधन हो गया। उनके निधन के बाद, जीएसटी विभाग ने उनके खिलाफ टैक्स, ब्याज और पेनल्टी की मांग उठाई। विभाग ने सीधे उनके नाम से कर निर्धारण किया और कोई भी नोटिस उनके कानूनी उत्तराधिकारी को जारी नहीं किया।

मुख्य कानूनी मुद्दा:
क्या किसी मृत व्यक्ति के खिलाफ बिना उनके कानूनी उत्तराधिकारी को शो-कॉज नोटिस भेजे जीएसटी मांग वैध हो सकती है?

अदालत का अवलोकन और निर्णय:

1. मृत व्यक्ति पर कर निर्धारण अमान्य:
जीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 93 यह स्पष्ट करती है कि मृतक व्यक्ति की कर देनदारियां उसके कानूनी उत्तराधिकारी पर स्थानांतरित हो सकती हैं।
हालांकि, कर निर्धारण या मांग केवल कानूनी उत्तराधिकारी के खिलाफ ही की जा सकती है, न कि सीधे मृतक व्यक्ति के नाम पर।

2. शो-कॉज नोटिस भेजना अनिवार्य:
अदालत ने माना कि कानूनी उत्तराधिकारी को उचित नोटिस देना और उनकी बात सुनना विभाग की बाध्यता है।
बिना नोटिस के कर निर्धारण करने से प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन होता है।

3. निर्णय:
न्यायालय ने माना कि विभाग द्वारा किया गया कर निर्धारण अवैध है।

बिना उचित नोटिस के कर मांग उठाना अस्थिर (unsustainable) है।

याचिकाकर्ता (कानूनी उत्तराधिकारी) की याचिका स्वीकार कर ली गई और कर निर्धारण को रद्द कर दिया गया।
यह निर्णय महत्वपूर्ण है क्योंकि यह स्पष्ट करता है कि किसी मृत व्यक्ति के खिलाफ सीधे कर मांग नहीं की जा सकती। यदि विभाग कर वसूली करना चाहता है, तो पहले कानूनी उत्तराधिकारी को नोटिस देना आवश्यक होगा और उन्हें जवाब देने का पूरा अवसर दिया जाना चाहिए।

Adv Sarfaraj Ansari
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