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Saturday, 5 April 2025

मृत व्यक्ति पर जीएसटी मांग अवैध: कानूनी उत्तराधिकारी को नोटिस देना अनिवार्य – इलाहाबाद हाईकोर्ट"(केस: अमित कुमार सेठिया (मृतक) बनाम उत्तर प्रदेश राज्य)

केस: अमित कुमार सेठिया (मृतक) बनाम उत्तर प्रदेश राज्य
न्यायालय – इलाहाबाद उच्च न्यायालय
निर्णय दिनांक – 02 अप्रैल 2025
न्यायपीठ – डिवीजन बेंच
संदर्भ संख्या – [(2025) 4 TMI 238 :: 2025:AHC:45317-DB]

मामले की पृष्ठभूमि:
अमित कुमार सेठिया, जो एक पंजीकृत करदाता थे, का निधन हो गया। उनके निधन के बाद, जीएसटी विभाग ने उनके खिलाफ टैक्स, ब्याज और पेनल्टी की मांग उठाई। विभाग ने सीधे उनके नाम से कर निर्धारण किया और कोई भी नोटिस उनके कानूनी उत्तराधिकारी को जारी नहीं किया।

मुख्य कानूनी मुद्दा:
क्या किसी मृत व्यक्ति के खिलाफ बिना उनके कानूनी उत्तराधिकारी को शो-कॉज नोटिस भेजे जीएसटी मांग वैध हो सकती है?

अदालत का अवलोकन और निर्णय:

1. मृत व्यक्ति पर कर निर्धारण अमान्य:
जीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 93 यह स्पष्ट करती है कि मृतक व्यक्ति की कर देनदारियां उसके कानूनी उत्तराधिकारी पर स्थानांतरित हो सकती हैं।
हालांकि, कर निर्धारण या मांग केवल कानूनी उत्तराधिकारी के खिलाफ ही की जा सकती है, न कि सीधे मृतक व्यक्ति के नाम पर।

2. शो-कॉज नोटिस भेजना अनिवार्य:
अदालत ने माना कि कानूनी उत्तराधिकारी को उचित नोटिस देना और उनकी बात सुनना विभाग की बाध्यता है।
बिना नोटिस के कर निर्धारण करने से प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन होता है।

3. निर्णय:
न्यायालय ने माना कि विभाग द्वारा किया गया कर निर्धारण अवैध है।

बिना उचित नोटिस के कर मांग उठाना अस्थिर (unsustainable) है।

याचिकाकर्ता (कानूनी उत्तराधिकारी) की याचिका स्वीकार कर ली गई और कर निर्धारण को रद्द कर दिया गया।
यह निर्णय महत्वपूर्ण है क्योंकि यह स्पष्ट करता है कि किसी मृत व्यक्ति के खिलाफ सीधे कर मांग नहीं की जा सकती। यदि विभाग कर वसूली करना चाहता है, तो पहले कानूनी उत्तराधिकारी को नोटिस देना आवश्यक होगा और उन्हें जवाब देने का पूरा अवसर दिया जाना चाहिए।

Adv Sarfaraj Ansari
TDS, GST एवं Income Tax से जुड़ी सहायता के लिए संपर्क करें
📞 मोबाइल: 8545873214
📧 ईमेल: (sagzp73@gmail.com ]
(Practicing - Tax Litigation & Return Compliance Work) 

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पार्टनर को वेतन, ब्याज, कमीशन या बोनस दे रहे हैं?तो अब संभल जाइए!1 अप्रैल 2025 से लागू नया नियम –₹20,000 पार होते ही TDS जरूरी!

NewsLetter


April 2025
विषय: पार्टनरशिप फर्म में पार्टनर को भुगतान पर TDS – नया नियम धारा 194T 

कॉल कनेक्ट होती है...

एडवोकेट सरफ़राज़ (Tax Consultant):
अरहम जी, कैसे हैं?

अरहम (पार्टनर – M/s Arham & Co.):
बिलकुल सर, अच्छा हूं। बस ये नया सेक्शन 194T समझ नहीं आया। क्या अब हमें पार्टनर को पेमेंट पर भी TDS काटना होगा?

सरफ़राज़:
जी हां, बिल्कुल! 1 अप्रैल 2025 से Income Tax Act में धारा 194T लागू हो चुकी है। अब यदि फर्म किसी भी पार्टनर को वेतन, ब्याज, पारिश्रमिक, कमीशन या बोनस के रूप में साल में ₹20,000 से अधिक भुगतान करती है, तो उस पर 10% TDS काटना अनिवार्य है।

(तभी कॉल पर रेयान भी जुड़ते हैं)

रेयान :
सर, क्या ये नियम सभी फर्म्स पर लागू होगा, चाहे उनका टर्नओवर कुछ भी हो?

सरफ़राज़:
बिलकुल! ये नियम सभी प्रकार की पार्टनरशिप फर्म्स पर लागू होगा — भले ही फर्म टैक्स ऑडिट के अंतर्गत आती हो या नहीं। अब TAN लेना भी जरूरी हो जाएगा।


केवल दो केस जो सब कुछ स्पष्ट कर देंगे:

Case 1: कुल भुगतान ₹19,000 (TDS नहीं कटेगा)

अरहम:
हमने एक पार्टनर को अप्रैल से दिसंबर तक –

  • ₹10,000 ब्याज,
  • ₹5,000 पारिश्रमिक,
  • ₹4,000 बोनस दिया।

सरफ़राज़:
यहां कुल भुगतान ₹19,000 हुआ, जो ₹20,000 से कम है, इसलिए इस केस में TDS नहीं काटना होगा। लेकिन जैसे ही ये लिमिट क्रॉस होगी, TDS शुरू करना अनिवार्य हो जाएगा।


Case 2: कुल भुगतान ₹35,000 (TDS कटेगा)

रेयान:
अगर हमने दूसरे पार्टनर को –

  • ₹20,000 वेतन,
  • ₹10,000 ब्याज,
  • ₹5,000 कमीशन दिया।

सरफ़राज़:
यहां कुल भुगतान हुआ ₹35,000, जो कि लिमिट से ऊपर है।
इसलिए पूरे ₹35,000 पर 10% TDS = ₹3,500 काटकर सरकार को जमा करना होगा।
ध्यान रहे, TDS भुगतान के समय या खाते में क्रेडिट करते समय — जो पहले हो — तभी काटा जाए।


TAN लेना क्यों जरूरी है?

अरहम:
तो इसके लिए TAN लेना जरूरी होगा?

सरफ़राज़:
जी बिल्कुल! बिना TAN आप न तो TDS काट सकते हैं, न जमा कर सकते हैं और न ही TDS रिटर्न फाइल कर पाएंगे।
अभी TAN के लिए आवेदन करना सबसे बेहतर रहेगा, ताकि आगे चलकर परेशानी न हो।

स कॉल से निकली अहम बात:

यदि आपकी फर्म पार्टनर को वेतन, ब्याज, कमीशन, पारिश्रमिक या बोनस के रूप में भुगतान करती है और वो कुल ₹20,000 सालाना से ज्यादा हो जाता है, तो 10% TDS काटना जरूरी है। इसके लिए TAN अनिवार्य है।


क्या करें अभी?

TAN के लिए तुरंत आवेदन करें
पार्टनर को होने वाले भुगतान की योजना बनाएं
सही समय पर TDS काटें, जमा करें और रिटर्न भरें (Form 26Q)

संपर्क करें

एडवोकेट सरफ़राज़ अंसारी
TAN, TDS, GST एवं Income Tax से जुड़ी संपूर्ण सहायता के लिए संपर्क करें

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Friday, 4 April 2025

"ISD अब अनिवार्य: GST Compliance का नया युग शुरू – क्या आप तैयार हैं?"Input Service Distributor (ISD) Mechanism under GST Effective from 1st April 2025 – समझें असर, ज़रूरत और अगला कदम

GST UPDATE | 
NEWSLETTER
Date: April 2025
From the Desk of: Adv. Sarfaraj Ansari
Subject: ISD (Input Service Distributor) अब अनिवार्य – जानिए क्या करना है?
---
"ISD लेना है या नहीं?" – एक सवाल जो अब मज़ाक नहीं, compliance का मुद्दा है।

प्रिय व्यवसायियों,
GST में हुए हालिया बदलावों ने एक पुराने लेकिन अक्सर misunderstood concept — ISD (Input Service Distributor) — को spotlight में ला दिया है।
1 अप्रैल 2025 से, कुछ स्थितियों में ISD registration अब अनिवार्य हो चुका है।

चलिए इसे एक छोटी सी कहानी और उदाहरण से समझते हैं:
कहानी से समझें – GST के चक्कर में उलझे चार दोस्त
Vivek (Ranchi), एक व्यापारी, GST compliance से परेशान होकर अपने दोस्त Rouchin (Dehradun) को कॉल करता है—“ISD registration ज़रूरी है क्या?”
Rouchin को तो कुछ समझ नहीं आता। फिर कॉल पर जुड़ता है Gaurav (Ghaziabad), जो सलाह देता है कि Adv. Sarfaraj Ansari (Ghazipur) से बात करनी चाहिए।
और Adv. Sarfaraj  Ansari के कॉल पर आते हैं, सारा confusion clear हो जाता है!

ISD क्या है – सरल भाषा में
> ISD (Input Service Distributor) वह व्यक्ति/office होता है जो centrally कोई input service (जैसे CA fees, legal services, software license) की invoice receive करता है, लेकिन उसका उपयोग अन्य branches करती हैं।

GST Amendment (1st April 2025) के बाद, यदि कोई GSTIN इस तरह की cross-branch service invoice receive करता है, तो:

ISD registration लेना अनिवार्य है
बिना ISD, ITC distribute करना non-compliance माना जाएगा
Credit का loss भी हो सकता है
Penalty का खतरा बढ़ जाता है
---
एक उदाहरण देखें:
ABC Ltd. की 3 शाखाएं हैं: Delhi (HO), Mumbai, और Bangalore.
Software services की invoice Delhi HO के नाम पर आती है, लेकिन इसका use Mumbai और Bangalore में होता है।
अब ऐसे में:
HO को ISD registration लेना होगा
और उस input service का ITC Mumbai और Bangalore को ISD invoice के माध्यम से transfer करना होगा

क्या करना है अब आपको?
अब व्यवसायियों को तुरंत यह analyze करना चाहिए:
क्या आप centralized services लेते हैं?
क्या invoice किसी एक location के नाम पर आती है लेकिन उपयोग अन्य जगह होता है?
क्या आपकी entity multi-state registered है?

अगर हाँ, तो:
1. ISD Registration तुरंत करें
2. Determine करें कि किस राज्य में ISD लेना है
3. ITC distribution के लिए system और SOP तैयार करें

ISD से जुड़े फायदे:
ITC Loss से बचाव
GST compliance में सुधार
Audit में transparency और clarity
Multiple GSTINs के बीच ITC transfer का कानूनी तरीका

यदि आप ISD applicability को लेकर unsure हैं, तो हम आपके लिए पूरी end-to-end सहायता दे सकते हैं l

Need clarity or support?
Reach out to us at:
Adv. Sarfaraj Ansari 
(SM Associates) 
[Phone: 8545873214]
[Email: sagzp73@gmail.com]

Tuesday, 25 March 2025

वित्त विधेयक 2025: धारा 206C(1H) के तहत TCS समाप्त – व्यापारियों के लिए बड़ी राहत!

वित्त विधेयक 2025: धारा 206C(1H) में बदलाव और TCS समाप्ति
1. धारा 206C(1H) क्या कहती है?
यह प्रावधान वस्तुओं की बिक्री पर 0.1% की दर से TCS (Tax Collected at Source) लागू करता है। यानी, जब कोई विक्रेता 50 लाख रुपये से अधिक मूल्य की वस्तुएं बेचता है, तो उसे इस बिक्री पर 0.1% टीसीएस वसूलना पड़ता है।

2. किन लेन-देन पर TCS लागू होता है?
यदि किसी विक्रेता की किसी खरीदार को की गई कुल बिक्री पिछले वित्तीय वर्ष में 50 लाख रुपये से अधिक रही हो, तो उसे अतिरिक्त बिक्री पर 0.1% टीसीएस वसूलना पड़ता है।

यह प्रावधान निर्यात और कुछ विशेष वस्तुओं (धारा 206C(1), 206C(1F), 206C(1G) के अंतर्गत आने वाले सामान) पर लागू नहीं होता।


3. वित्त विधेयक 2025 में क्या बदलाव प्रस्तावित हैं?
TDS (Tax Deducted at Source) पहले से ही धारा 194Q के तहत लागू है, जिसमें खरीदार को 0.1% की दर से कर काटना पड़ता है।

अभी की स्थिति में, यदि खरीदार ने टीडीएस काट लिया हो, तो विक्रेता को टीसीएस नहीं लगाना होता, लेकिन कई बार विक्रेता को यह जानकारी नहीं होती कि टीडीएस काटा गया या नहीं।
परिणाम: कई बार एक ही लेन-देन पर TDS और TCS दोनों लागू हो जाते हैं, जिससे जटिलता और तरलता (liquidity) की समस्या होती है।

नया बदलाव: 1 अप्रैल 2025 से धारा 206C(1H) पूरी तरह समाप्त कर दी जाएगी, यानी अब TCS की आवश्यकता नहीं रहेगी।


4. यह बदलाव करदाताओं के लिए कैसे फायदेमंद होगा?
✅ अनुपालन बोझ कम होगा – अब विक्रेताओं को अलग से टीसीएस वसूलने और रिपोर्ट करने की जरूरत नहीं होगी।
✅ कैश फ्लो सुधरेगा – टीसीएस वसूली और जमा करने की जटिलता खत्म होगी, जिससे नकदी प्रवाह बाधित नहीं होगा।
✅ बिक्री लेन-देन में स्पष्टता बढ़ेगी – खरीदार और विक्रेता दोनों को पता रहेगा कि सिर्फ टीडीएस लागू होगा और अलग से टीसीएस की जरूरत नहीं है।

5. नया नियम कब से लागू होगा?
👉 1 अप्रैल 2025 से विक्रेताओं को धारा 206C(1H) के तहत TCS वसूलने की जरूरत नहीं होगी।
वित्त विधेयक 2025 के अनुसार, 1 अप्रैल 2025 से वस्तुओं की बिक्री पर TCS समाप्त कर दिया जाएगा। इससे अनुपालन सरल होगा, नकदी प्रवाह सुधरेगा और विक्रेता-खरीदार दोनों को राहत मिलेगी।


सेक्शन 128A GST: ब्याज और जुर्माना माफी योजना

सेक्शन 128A GST के तहत ब्याज और जुर्माने की माफी योजना के बारे में



टैक्स भुगतान की अंतिम तारीख: 

अगर कोई करदाता इस योजना का लाभ लेना चाहता है, तो उसे मांग की गई पूरी टैक्स राशि का भुगतान 31 मार्च, 2025 तक करना होगा। यह नोटिफिकेशन नंबर 21/2024-सेंट्रल टैक्स (8 अक्टूबर, 2024) के अनुसार है, जिसमें ब्याज और जुर्माने की माफी के लिए यह तारीख तय की गई है।

फॉर्म GST SPL-02 दाखिल करने की अंतिम तारीख: 

टैक्स भुगतान के बाद, करदाता को फॉर्म GST SPL-02 में आवेदन 30 जून, 2025 तक जमा करना होगा। यह नियम सर्कुलर नंबर 238/32/2024-GST (15 अक्टूबर, 2024) के पैराग्राफ 3.1.5 से लिया गया है, जिसमें कहा गया है कि आवेदन 31 मार्च, 2025 से तीन महीने के भीतर दाखिल करना होगा।

विशेष मामले (सेक्शन 74 से सेक्शन 73 में बदलाव): 

अगर किसी मामले में पहले सेक्शन 74 (धोखाधड़ी या जानबूझकर गलत बयानी वाले मामले) के तहत ऑर्डर पास हुआ था, लेकिन बाद में अपील प्राधिकरण, ट्रिब्यूनल या कोर्ट ने इसे सेक्शन 73 (गैर-धोखाधड़ी मामले) में बदल दिया, तो करदाता को नए ऑर्डर की तारीख से 6 महीने के भीतर टैक्स जमा करना होगा। यह नियम सेक्शन 128A(1) के पहले प्रोविजो और सर्कुलर 238/2024 के पैराग्राफ 3.1.5 में स्पष्ट किया गया है। ऐसे मामलों में, करदाता को सेक्शन 73 के तहत नए ऑर्डर की सूचना मिलने से 6 महीने के भीतर फॉर्म GST SPL-02 दाखिल करना होगा।

यह योजना 1 नवंबर, 2024 से लागू है और वित्तीय वर्ष 2017-18, 2018-19 और 2019-20 के लिए सेक्शन 73 के तहत टैक्स विवादों को कम करने और करदाताओं को राहत देने के लिए शुरू की गई है, जैसा कि GST काउंसिल ने सिफारिश की थी। इन समय सीमाओं और शर्तों का पालन करें ताकि माफी का लाभ उठाया जा सके। अधिक जानकारी के लिए नोटिफिकेशन नंबर 21/2024 और सर्कुलर नंबर 238/2024 देखें।

Saturday, 22 March 2025

Advisory :-GST Waiver Application Issues & Deadlines – Key Information (Issue in filing applications (SPL 01/SPL 02) under waiver scheme)

"GST Waiver Issues & Deadlines"

SPL 01/SPL 02 छूट योजना के तहत आवेदन में समस्याएँ

GSTN ने करदाताओं द्वारा छूट (waiver) आवेदन दाखिल करने में आ रही समस्याओं पर स्पष्टीकरण जारी किया है।
मुख्य समस्याएँ:
1. SPL 02 आवेदन में तकनीकी दिक्कतें:
ऑर्डर नंबर ड्रॉपडाउन में उपलब्ध नहीं।
ऑर्डर विवरण स्वतः नहीं आ रहा।
भुगतान विवरण (Payment Details) स्वतः नहीं भर रहा।
"Payment Towards Demand" से भुगतान करने में कठिनाई।
DRC-03A के माध्यम से भुगतान समायोजित करने की सुविधा उपलब्ध नहीं।
पहले से दायर अपील (APL 01) को वापस लेने का विकल्प नहीं।
2. छूट आवेदन की अंतिम तिथि को लेकर भ्रम:
कई करदाता मान रहे हैं कि अंतिम तिथि 31.03.2025 है, लेकिन सही अंतिम तिथि 30.06.2025 है।
CGST नियम 164(6) के अनुसार, अधिसूचना की तिथि से 3 महीने के भीतर आवेदन करना होगा।
3. भुगतान की समय सीमा:
Notification 21/2024-CT (दिनांक 08.10.2024) के अनुसार, छूट योजना का लाभ उठाने के लिए कर भुगतान 31.03.2025 तक करना अनिवार्य है।
Notification 21‌/2024-CT
भुगतान के लिए GST पोर्टल पर "Payment Towards Demand" विकल्प का उपयोग करें।
4. समस्या आने पर समाधान:
यदि "Payment Towards Demand" से भुगतान नहीं हो रहा, तो Form DRC-03 ("Others" श्रेणी में) से स्वैच्छिक भुगतान (Voluntary Payment) करें।
भुगतान को सही आदेश से जोड़ने के लिए Form DRC-03A दाखिल करें।
5. भुगतान विवरण नहीं दिखने पर क्या करें?
Electronic Liability Ledger में भुगतान की पुष्टि करें।
यदि भुगतान सही तरीके से दिखाई दे रहा है, तो छूट आवेदन दाखिल करें।
GST पोर्टल पर नेविगेशन: Login >> Services >> Ledgers >> Electronic Liability Register

महत्वपूर्ण तिथियाँ:
✅ कर भुगतान की अंतिम तिथि: 31.03.2025
✅ छूट आवेदन की अंतिम तिथि: 30.06.2025

समस्या आने पर तुरंत GSTN पोर्टल पर Grievance Ticket दर्ज करें।
Regard
Adv Sarfaraj Ansari

http://sagzp73.blogspot.com/2025/01/advisory-for-waiver-scheme-under.html

Tuesday, 11 March 2025

"आयकर धारा 43B(h): MSME वित्तीय वर्ष 2024-25 की समाप्ति से पहले भुगतान करें, वरना कर लाभ नहीं मिलेगा। 31 मार्च तक भुगतान न करने पर खर्च अगले वर्ष में ही मान्य होगा।"


*आयकर अधिनियम की धारा 43B(h) – MSME को समय पर भुगतान सुनिश्चित करने का नियम*

सरकार ने वित्त अधिनियम, 2023 के माध्यम से आयकर अधिनियम में धारा 43B(h) जोड़ी, जिसका मुख्य उद्देश्य सूक्ष्म (Micro) और लघु (Small) उद्यमों को समय पर भुगतान सुनिश्चित करना था।
 यह प्रावधान 1 अप्रैल 2023 से प्रभावी हुआ और वित्त वर्ष 2023-24 से लागू हुआ है, वित्तीय वर्ष 2024-25 मे भी ध्यान रखना होगा।

इस प्रावधान के तहत, यदि कोई व्यवसाय MSME से माल या सेवाएं खरीदता है लेकिन 45 दिनों के भीतर भुगतान नहीं करता, तो उस खर्च को आयकर गणना में शामिल नहीं किया जाएगा।

धारा 43B(h) का उद्देश्य

1. MSME को समय पर भुगतान सुनिश्चित करना ताकि उनका नकदी प्रवाह (Cash Flow) प्रभावित न हो।

2. बड़ी कंपनियों और व्यवसायों को MSME से जुड़े भुगतान समय पर करने के लिए बाध्य करना।

3. कर अनुपालन को पारदर्शी बनाना और MSME के आर्थिक सशक्तिकरण को बढ़ावा देना।

MSME की परिभाषा और इसकी सीमा

MSME को सूक्ष्म (Micro), लघु (Small) और मध्यम (Medium) तीन श्रेणियों में बांटा गया है।

सूक्ष्म (Micro) उद्यम: यदि किसी इकाई का निवेश 1 करोड़ रुपये तक है और टर्नओवर 5 करोड़ रुपये तक है।

लघु (Small) उद्यम: यदि किसी इकाई का निवेश 10 करोड़ रुपये तक है और टर्नओवर 50 करोड़ रुपये तक है।

मध्यम (Medium) उद्यम: यदि किसी इकाई का निवेश 50 करोड़ रुपये तक है और टर्नओवर 250 करोड़ रुपये तक है।

ध्यान देने वाली बात यह है कि धारा 43B(h) केवल सूक्ष्म (Micro) और लघु (Small) उद्यमों पर लागू होती है। मध्यम (Medium) उद्यमों पर यह प्रावधान लागू नहीं होता।

समय पर भुगतान न करने पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

यदि किसी व्यवसाय ने MSME से माल या सेवाएं खरीदी हैं, लेकिन 45 दिनों के भीतर भुगतान नहीं किया और 31 मार्च तक भी भुगतान नहीं हुआ, तो:

1. वह खर्च आयकर गणना में शामिल नहीं किया जाएगा और उस पर कर कटौती (Tax Deduction) का लाभ नहीं मिलेगा।

2. यदि 31 मार्च के बाद भुगतान किया जाता है, तो वह खर्च अगले वित्तीय वर्ष में कर गणना में जोड़ा जाएगा।

3. इससे कर योग्य आय बढ़ जाएगी और व्यवसाय को अधिक कर चुकाना पड़ेगा।

यदि 31 मार्च से पहले भुगतान हो जाता है, तो उस खर्च को कर कटौती के लिए मान्य माना जाएगा और आयकर में समायोजित किया जा सकेगा।

यह प्रावधान किन पर लागू नहीं होगा?

1. यदि विक्रेता मध्यम (Medium) या बड़े व्यवसायों की श्रेणी में आता है।

2. यदि विक्रेता MSME अधिनियम के तहत पंजीकृत नहीं है।

3. यदि खरीद व्यापारियों (Traders) से की गई है, क्योंकि व्यापारी MSME अधिनियम के तहत नहीं आते।

4. यदि व्यवसायी 44AD (Presumptive Taxation) के तहत कर भरता है।

5. यदि खरीदी गई सेवा मीडिया, कानूनी सेवाओं, या कंसल्टेंसी से जुड़ी है।

क्या करना चाहिए?

1. MSME विक्रेताओं की पहचान और पुष्टि करें

सुनिश्चित करें कि आपके विक्रेता MSME अधिनियम के तहत पंजीकृत हैं।

उनके Udyam Registration Number (URN) की जांच करें, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि वे सूक्ष्म (Micro) या लघु (Small) श्रेणी में आते हैं।

2. समय पर भुगतान सुनिश्चित करें

MSME से खरीद के 45 दिनों के भीतर भुगतान करने की आदत डालें।

मार्च महीने में विशेष रूप से सतर्क रहें और 31 मार्च से पहले सभी लंबित भुगतान पूरे करें।

3. कर और लेखा रिकॉर्ड को अपडेट रखें

MSME को किए गए सभी भुगतान का रिकॉर्ड बनाए रखें।

सभी भुगतान प्रमाण (Payment Proof) को संग्रहीत करें, ताकि भविष्य में कोई विवाद न हो।

4. स्वचालित भुगतान प्रणाली अपनाएं

बिलिंग और भुगतान को स्वचालित (Automate) करें ताकि भुगतान में देरी से बचा जा सके।

क्लाउड-आधारित अकाउंटिंग सॉफ़्टवेयर का उपयोग करें ताकि सही समय पर भुगतान सुनिश्चित किया जा सके।

5. कर सलाहकार से परामर्श करें

यह सुनिश्चित करें कि आप धारा 43B(h) के अनुपालन में कोई गलती नहीं कर रहे हैं।

वित्तीय वर्ष समाप्त होने से पहले सभी लंबित भुगतान निपटा लें, ताकि आपको अतिरिक्त कर भार न उठाना पड़े।

व्यावहारिक उदाहरण

उदाहरण 1: समय पर भुगतान किया गया
एक कंपनी ने 1 फरवरी 2024 को एक MSME विक्रेता से 5 लाख रुपये का माल खरीदा और 15 फरवरी 2024 को उसका भुगतान कर दिया।
परिणाम: यह खर्च कर कटौती के लिए मान्य होगा क्योंकि भुगतान 45 दिनों के भीतर किया गया है।

उदाहरण 2: देरी से भुगतान किया गया

एक व्यवसाय ने 1 जनवरी 2024 को एक MSME विक्रेता से 10 लाख रुपये की सेवाएं लीं, लेकिन 30 अप्रैल 2024 को भुगतान किया।
परिणाम: 31 मार्च 2024 तक भुगतान न होने के कारण, यह खर्च FY 2023-24 में कर कटौती के लिए मान्य नहीं होगा और कर योग्य आय बढ़ जाएगी। इस खर्च को अगले वित्तीय वर्ष में कर गणना में जोड़ा जाएगा।

धारा 43B(h) का उद्देश्य MSME को समय पर भुगतान सुनिश्चित करना है, जिससे उनका वित्तीय संतुलन मजबूत बना रहे। यदि 31 मार्च तक MSME को भुगतान नहीं किया गया, तो वह खर्च कर गणना में मान्य नहीं होगा और व्यवसाय को अतिरिक्त कर भार उठाना पड़ेगा।

इसलिए, सभी व्यवसायों को यह नियम समझकर MSME से की गई खरीद का समय पर भुगतान करना चाहिए, ताकि उन्हें कर में किसी भी तरह की समस्या का सामना न करना पड़े।

महत्वपूर्ण बातें – क्या करें और क्या न करें?

क्या करें:
✔ MSME से की गई खरीद पर 45 दिनों के भीतर भुगतान करें।
✔ विक्रेता की MSME पंजीकरण स्थिति की पुष्टि करें।
✔ 31 मार्च से पहले सभी लंबित भुगतान निपटा लें।
✔ अकाउंटिंग सॉफ़्टवेयर और ऑटोमेशन का उपयोग करें ताकि भुगतान में देरी न हो।
✔ कर सलाहकार से परामर्श लें ताकि सभी अनुपालन पूरे किए जा सकें।

क्या न करें:

❌ MSME को 31 मार्च के बाद भुगतान करने की गलती न करें।
❌ बिना जांचे किसी व्यापारी (Trader) को MSME मानकर गलतफहमी न पालें।
❌ कर रिकॉर्ड और भुगतान का सही रिकॉर्ड बनाए रखने में लापरवाही न करें।

*"समय पर भुगतान करें – MSME को सशक्त बनाएं और अपने व्यवसाय को कर जोखिम से बचाएं!"*

Friday, 28 February 2025

राधिका अग्रवाल बनाम भारत संघ दिनांक 27 फरवरी, 2025 जीएसटी अधिनियम में अनिवार्य प्रक्रिया और पहले की शर्त और बाद की प्रक्रिया सहित गिरफ्तारी के बारे में सर्वोच्च न्यायालय का आदेश

 सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: Radhika Agarwal बनाम Union of India (27 फरवरी 2025)



27 फरवरी 2025 को Radhika Agarwal बनाम Union of India मामले में सुप्रीम कोर्ट ने GST और कस्टम कानूनों के तहत गिरफ्तारी की प्रक्रिया पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। इस फैसले में कोर्ट ने गिरफ्तारी के अधिकार को संवैधानिक ठहराया, लेकिन मनमानी गिरफ्तारी रोकने के लिए सख्त दिशा-निर्देश भी दिए।

1. गिरफ्तारी का संवैधानिक आधार:

  • सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि GST और कस्टम एक्ट में अधिकारियों को गिरफ्तारी का अधिकार है, क्योंकि यह कर चोरी को रोकने और अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है।
  • लेकिन यह शक्ति मनमाने तरीके से नहीं इस्तेमाल की जा सकती।
  • कोर्ट ने जोर देकर कहा कि कस्टम्स एक्ट और जीएसटी एक्ट के तहत गिरफ्तारी की शक्ति एक गंभीर उपाय है और इसे बहुत सावधानी के साथ प्रयोग किया जाना चाहिए।

  • कोर्ट ने कस्टम्स एक्ट में 2012, 2013 और 2019 में किए गए संशोधनों का जिक्र किया, जिसमें कुछ अपराधों को संज्ञेय (Cognizable) और गैर-जमानती (Non-Bailable) बनाया गया, जबकि अन्य अपराध असंज्ञेय (Non-Cognizable) और जमानती (Bailable) बने रहे।

  • इसी तरह, जीएसटी एक्ट के तहत, कोर्ट ने धारा 132 का उल्लेख किया, जो कर चोरी की राशि के आधार पर अपराधों को वर्गीकृत करता है। उदाहरण के लिए, यदि कर चोरी की राशि ₹500 लाख से अधिक है, तो यह संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध होगा, जबकि कम राशि के मामले में यह असंज्ञेय और जमानती होगा।


Section 132 of  CGST ACT 2017
 Punishment for certain offences
(1) 1[Whoever commits, or causes to commit and retain the benefits arising out of, any of the following offences], namely:-
(a) supplies any goods or services or both without issue of any invoice, in violation of the provisions of this Act or the rules made thereunder, with the intention to evade tax;
(b) issues any invoice or bill without supply of goods or services or both in violation of the provisions of this Act, or the rules made thereunder leading to wrongful availment or utilisation of input tax credit or refund of tax;
(c) 2[avails input tax credit using the invoice or bill referred to in clause (b) or fraudulently avails input tax credit without any invoice or bill;]
(d) collects any amount as tax but fails to pay the same to the Government beyond a period of three months from the date on which such payment becomes due;
(e) evades tax 3[****]or fraudulently obtains refund and where such offence is not covered under clauses (a) to (d);
(f) falsifies or substitutes financial records or produces fake accounts or documents or furnishes any false information with an intention to evade payment of tax due under this Act;
(g) 4[****];
(h) acquires possession of, or in any way concerns himself in transporting, removing, depositing, keeping, concealing, supplying, or purchasing or in any other manner deals with, any goods which he knows or has reasons to believe are liable to confiscation under this Act or the rules made thereunder;
(i) receives or is in any way concerned with the supply of, or in any other manner deals with any supply of services which he knows or has reasons to believe are in contravention of any provisions of this Act or the rules made thereunder;
(j) 5[****];
(k) 6[****]; or
(l) attempts to commit, or abets the commission of any of the offences mentioned in 7[clauses (a) to (f) and clauses (h) and (i)] of this section,
shall be punishable-
(i) in cases where the amount of tax evaded or the amount of input tax credit wrongly availed or utilised or the amount of refund wrongly taken exceeds five hundred lakh rupees, with imprisonment for a term which may extend to five years and with fine;
(ii) in cases where the amount of tax evaded or the amount of input tax credit wrongly availed or utilised or the amount of refund wrongly taken exceeds two hundred lakh rupees but does not exceed five hundred lakh rupees, with imprisonment for a term which may extend to three years and with fine;
(iii) in the case of 8[an offence specified in clause (b),] where the amount of tax evaded or the amount of input tax credit wrongly availed or utilised or the amount of refund wrongly taken exceeds one hundred lakh rupees but does not exceed two hundred lakh rupees, with imprisonment for a term which may extend to one year and with fine;
(iv) in cases where he commits or abets the commission of an offence specified in clause (f) 9[****], he shall be punishable with imprisonment for a term which may extend to six months or with fine or with both.
(2) Where any person convicted of an offence under this section is again convicted of an offence under this section, then, he shall be punishable for the second and for every subsequent offence with imprisonment for a term which may extend to five years and with fine.
(3) The imprisonment referred to in clauses (i), (ii) and (iii) of sub-section (1) and sub-section (2) shall, in the absence of special and adequate reasons to the contrary to be recorded in the judgment of the Court, be for a term not less than six months.
(4) Notwithstanding anything contained in the Code of Criminal Procedure, 1973, all offences under this Act, except the offences referred to in sub-section (5) shall be non- cognizable and bailable.
(5) The offences specified in clause (a) or clause (b) or clause (c) or clause (d) of sub-section (1) and punishable under clause (i) of that sub-section shall be cognizable and non-bailable. 
(6) A person shall not be prosecuted for any offence under this section except with the previous sanction of the Commissioner.
Explanation.- For the purposes of this section, the term " tax" shall include the amount of tax evaded or the amount of input tax credit wrongly availed or utilised or refund wrongly taken under the provisions of this Act, the State Goods and Services Tax Act, the Integrated Goods and Services Tax Act or the Union Territory Goods and Services Tax Act and cess levied under the Goods and Services Tax (Compensation to States) Act.

2. गिरफ्तारी से पहले की अनिवार्य प्रक्रिया:

✔️ "Reason to Believe" (विश्वास करने का कारण) अनिवार्य

  • अधिकारी को लिखित रूप में यह बताना होगा कि गिरफ्तारी क्यों जरूरी है
  • सिर्फ शक के आधार पर गिरफ्तारी नहीं की जा सकती, ठोस प्रमाण जरूरी हैं।

✔️ गिरफ्तारी के लिए उचित दस्तावेज और पारदर्शिता जरूरी

  • गिरफ्तारी से पहले कारण लिखित रूप में दर्ज करना होगा, जिससे बाद में इसका न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) किया जा सके।
  • यह कदम अधिकारियों द्वारा शक्ति के दुरुपयोग को रोकने के लिए अनिवार्य किया गया है।

✔️ वकील से मिलने का अधिकार

  • गिरफ्तारी के बाद व्यक्ति को तुरंत वकील से मिलने की अनुमति दी जाएगी, जिससे वह अपनी सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा कर सके।
    • गिरफ्तारी करने वाले अधिकारी के पास "मान्य कारण (Reasons to Believe)" होना चाहिए कि व्यक्ति ने संबंधित अधिनियम के तहत अपराध किया है।

    • मान्य कारण विश्वसनीय सामग्री (Credible Material) पर आधारित होने चाहिए और इसे लिखित रूप में दर्ज किया जाना चाहिए।

    • गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को गिरफ्तारी के कारण के बारे में तुरंत सूचित किया जाना चाहिए और यह जानकारी लिखित रूप में दी जानी चाहिए।

    • गिरफ्तारी करने वाले अधिकारी को यह सुनिश्चित करना होगा कि संज्ञेय और गैर-जमानती अपराधों के लिए मौद्रिक सीमाएं (Monetary Thresholds) पूरी होती हैं (जैसे कस्टम्स एक्ट के तहत ₹50 लाख से अधिक कर चोरी या जीएसटी एक्ट के तहत ₹500 लाख से अधिक कर चोरी)।

  • कोर्ट ने जोर देकर कहा कि गिरफ्तारी को रूटीन के तौर पर नहीं किया जाना चाहिए और इसे केवल तब किया जाना चाहिए जब अपराध की जांच के लिए यह आवश्यक हो या सबूतों के साथ छेड़छाड़ या गवाहों को डराने की संभावना हो।


3. गिरफ्तारी की प्रक्रिया और न्यायिक नियंत्रण:

✔️ CrPC (दंड प्रक्रिया संहिता) का पालन अनिवार्य

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि GST और कस्टम कानूनों के तहत गिरफ्तारी के दौरान CrPC की प्रक्रिया लागू होगी
  • CrPC की धारा 41-B (गिरफ्तारी की प्रक्रिया) और 41-D (वकील से मिलने का अधिकार) का पालन करना अनिवार्य होगा।

✔️ न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) अनिवार्य

  • अदालतें यह जांचने के लिए अधिकृत रहेंगी कि गिरफ्तारी वैध थी या नहीं
  • यदि गिरफ्तारी मनमानी तरीके से की गई होगी, तो अदालतें हस्तक्षेप कर सकती हैं
  • कोर्ट ने गिरफ्तारी के बाद कई सुरक्षा उपायों पर प्रकाश डाला:

    • गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को पूछताछ के दौरान अपनी पसंद के वकील से मिलने का अधिकार होगा, हालांकि यह अधिकार पूरी पूछताछ के दौरान नहीं होगा।

    • गिरफ्तारी करने वाले अधिकारी को गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के रिश्तेदार या मित्र को गिरफ्तारी और उसके स्थान के बारे में सूचित करना होगा।

    • गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाना चाहिए।

    • गिरफ्तारी करने वाले अधिकारी को गिरफ्तारी का विस्तृत रिकॉर्ड (Diary) रखना होगा, जिसमें गिरफ्तारी का समयगिरफ्तारी के कारण, और जांच के दौरान दर्ज किए गए बयान शामिल होंगे।

    • मजिस्ट्रेट को यह सुनिश्चित करना होगा कि दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 50A के प्रावधानों का पालन किया गया है, जिसमें गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को उसके अधिकारों के बारे में सूचित करना और उसके रिश्तेदार या मित्र को सूचित करना शामिल है।

4. "स्वैच्छिक भुगतान" (Voluntary Payment) पर स्पष्टीकरण:

✔️ करदाता को जबरदस्ती पैसे भरने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि GST अधिनियम की धारा 74(5) के तहत "स्वैच्छिक भुगतान" वाकई स्वैच्छिक होना चाहिए
  • अधिकारियों द्वारा दबाव डालकर पैसा वसूलने की प्रथा पर सख्त रोक लगाई गई है।
  • CBIC को स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी करने के निर्देश दिए गए हैं, ताकि गिरफ्तारी का उपयोग जबरन कर वसूली के लिए न किया जाए।
GST अधिनियम की धारा 74(5)
*Section 74. Determination of tax 2[, pertaining to the period up to Financial Year 2023-24,] not paid or short paid or erroneously refunded or input tax credit wrongly availed or utilised by reason of fraud or any willful- misstatement or suppression of facts.-
(1) Where it appears to the proper officer that any tax has not been paid or short paid or erroneously refunded or where input tax credit has been wrongly availed or utilised by reason of fraud, or any wilful-misstatement or suppression of facts to evade tax, he shall serve notice on the person chargeable with tax which has not been so paid or which has been so short paid or to whom the refund has erroneously been made, or who has wrongly availed or utilised input tax credit, requiring him to show cause as to why he should not pay the amount specified in the notice along with interest payable thereon under section 50 and a penalty equivalent to the tax specified in the notice.
(2) The proper officer shall issue the notice under sub-section (1) at least six months prior to the time limit specified in sub-section (10) for issuance of order.
(3) Where a notice has been issued for any period under sub-section (1), the proper officer may serve a statement, containing the details of tax not paid or short paid or erroneously refunded or input tax credit wrongly availed or utilised for such periods other than those covered under sub-section (1), on the person chargeable with tax.
(4) The service of statement under sub-section (3) shall be deemed to be service of notice under sub-section (1) of section 73, subject to the condition that the grounds relied upon in the said statement, except the ground of fraud, or any wilful-misstatement or suppression of facts to evade tax, for periods other than those covered under subsection (1) are the same as are mentioned in the earlier notice.
(5) The person chargeable with tax may, before service of notice under sub-section (1), pay the amount of tax along with interest payable under section 50 and a penalty equivalent to fifteen per cent. of such tax on the basis of his own ascertainment of such tax or the tax as ascertained by the proper officer and inform the proper officer in writing of such payment.
(6) The proper officer, on receipt of such information, shall not serve any notice under sub-section (1), in respect of the tax so paid or any penalty payable under the provisions of this Act or the rules made thereunder.
(7) Where the proper officer is of the opinion that the amount paid under sub-section (5) falls short of the amount actually payable, he shall proceed to issue the notice as provided for in sub-section (1) in respect of such amount which falls short of the amount actually payable.
(8) Where any person chargeable with tax under sub-section (1) pays the said tax along with interest payable under section 50 and a penalty equivalent to twenty-five per cent. of such tax within thirty days of issue of the notice, all proceedings in respect of the said notice shall be deemed to be concluded.
(9) The proper officer shall, after considering the representation, if any, made by the person chargeable with tax, determine the amount of tax, interest and penalty due from such person and issue an order.
(10) The proper officer shall issue the order under sub-section (9) within a period of five years from the due date for furnishing of annual return for the financial year to which the tax not paid or short paid or input tax credit wrongly availed or utilised relates to or within five years from the date of erroneous refund.
(11) Where any person served with an order issued under sub-section (9) pays the tax along with interest payable thereon under section 50 and a penalty equivalent to fifty per cent. of such tax within thirty days of communication of the order, all proceedings in respect of the said notice shall be deemed to be concluded.
2[(12) The provisions of this section shall be applicable for determination of tax pertaining to the period up to Financial Year 2023-24.]
Explanation 1.- For the purposes of section 73 and this section,-
(i) the expression "all proceedings in respect of the said notice" shall not include proceedings under section 132;
(ii) where the notice under the same proceedings is issued to the main person liable to pay tax and some other persons, and such proceedings against the main person have been concluded under section 73 or section 74, the proceedings against all the persons liable to pay penalty under 1[sections 122 and 125] are deemed to be concluded.
Explanation 2.- For the purposes of this Act, the expression "suppression" shall mean non-declaration of facts or information which a taxable person is required to declare in the return, statement, report or any other document furnished under this Act or the rules made thereunder, or failure to furnish any information on being asked for, in writing, by the proper officer.
  • कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कस्टम्स एक्ट और जीएसटी एक्ट के तहत गिरफ्तारी पर न्यायिक समीक्षा की शक्ति सीमित है और यह केवल यह सुनिश्चित करने के लिए है कि कानूनी और संवैधानिक सुरक्षा उपायों का पालन किया गया है।

  • कोर्ट गिरफ्तारी करने वाले अधिकारी के "मान्य कारण" के आधार पर सामग्री की पर्याप्तता की समीक्षा नहीं कर सकती। हालांकि, यदि गिरफ्तारी मनमानीअनुचित, या कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन करती है, तो कोर्ट हस्तक्षेप कर सकती है।

  • कोर्ट ने यह भी जोर दिया कि गिरफ्तारी की समीक्षा करते समय आनुपातिकता का सिद्धांत (Doctrine of Proportionality) लागू किया जाना चाहिए, यह सुनिश्चित करते हुए कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर प्रतिबंध आवश्यक और सार्वजनिक हित के अनुरूप हो।


5. जीएसटी प्रावधानों की संवैधानिक वैधता:

  • कोर्ट ने जीएसटी एक्ट की धारा 69 और 70 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा, जो कर चोरी के संदेह में व्यक्तियों को गिरफ्तार करने और तलब करने की शक्ति प्रदान करती है।
    कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि ये प्रावधान संसद की विधायी क्षमता से परे हैं, यह कहते हुए कि कर चोरी के लिए गिरफ्तारी और मुकदमा चलाने की शक्ति जीएसटी लगाने और वसूलने की शक्ति का अंग है, जो संविधान के अनुच्छेद 246-A के तहत प्रदान की गई है।

     Section 69 of CGST ACT 2017

  •  Power to arrest.

  • (1) Where the Commissioner has reasons to believe that a person has committed any offence specified in clause (a) or clause (b) or clause (c) or clause (d) of sub-section (1) of section 132 which is punishable under clause (i) or (ii) of sub-section (1), or sub-section (2) of the said section, he may, by order, authorise any officer of central tax to arrest such person.
    (2) Where a person is arrested under sub-section (1) for an offence specified under sub- section (5) of section 132, the officer authorised to arrest the person shall inform such person of the grounds of arrest and produce him before a Magistrate within twenty four hours.
    (3) Subject to the provisions of the Code of Criminal Procedure, 1973 (2 of 1974),-
    (a) where a person is arrested under sub-section (1) for any offence specified under sub-section (4) of section 132, he shall be admitted to bail or in default of bail, forwarded to the custody of the Magistrate;
    (b) in the case of a non-cognizable and bailable offence, the Deputy Commissioner or the Assistant Commissioner shall, for the purpose of releasing an arrested person on bail or otherwise, have the same powers and be subject to the same provisions as an officer-in-charge of a police station. 

Section 70 of CGST ACT 2017
 Power to summon persons to give evidence and produce documents.-
(1) The proper officer under this Act shall have power to summon any person whose attendance he considers necessary either to give evidence or to produce a document or any other thing in any inquiry in the same manner, as provided in the case of a civil court under the provisions of the Code of Civil Procedure, 1908 (5 of 1908).
1[(1A) All persons summoned under sub-section (1) shall be bound to attend, either in person or by an authorised representative, as such officer may direct, and the person so appearing shall state the truth during examination or make statements or produce such documents and other things as may be required.]
(2) Every such inquiry referred to in sub-section (1) shall be deemed to be a "judicial proceedings" within the meaning of section 193 and section 228 of the Indian Penal Code (45 of 1860).
                                  Article 246A in Constitution of India
246A. Special provision with respect to goods and services tax.—
(1)Notwithstanding anything contained in articles 246 and 254, Parliament, and, subject to clause (2), the Legislature of every State, have power to make laws with respect to goods and services tax imposed by the Union or by such State.
(2)Parliament has exclusive power to make laws with respect to goods and services tax where the supply of goods, or of services, or both takes place in the course of inter-State trade or commerce.
Explanation.—The provisions of this article, shall, in respect of goods and services tax referred to in clause (5) of article 279A, take effect from the date recommended by the Goods and Services Tax Council.]


6. जीएसटी एक्ट के तहत गिरफ्तारी के लिए दिशा-निर्देश:

  • कोर्ट ने जीएसटी एक्ट के तहत गिरफ्तारी के लिए विशिष्ट दिशा-निर्देश जारी किए:
    तकनीकी प्रकृति (Technical Nature) के मामलों में गिरफ्तारी नहीं की जानी चाहिए (जैसे कानून की व्याख्या में अंतर)।
    गिरफ्तारी केवल तब की जानी चाहिए जब कर चोरी या इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) के फर्जी दावों का स्पष्ट सबूत हो।
    कमिश्नर को गिरफ्तारी के लिए विस्तृत कारण दर्ज करने होंगे, जिसमें सामग्री सबूत और मौद्रिक सीमाएं शामिल होंगी, जो अपराध को गैर-जमानती बनाती हैं।
    गिरफ्तारी करने वाले अधिकारी को डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (1997) के मामले में दिए गए दिशा-निर्देशों का पालन करना होगा, जिसमें गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को उसके अधिकारों के बारे में सूचित करना और हिरासत के दौरान उसकी स्वास्थ्य और सुरक्षा सुनिश्चित करना शामिल है।

7. स्वैच्छिक कर भुगतान:

  • कोर्ट ने खोज, निरीक्षण या जांच के दौरान स्वैच्छिक कर भुगतान के मुद्दे को संबोधित किया। यह स्पष्ट किया कि करदाता स्वेच्छा से कर देनदारियों का भुगतान कर सकते हैं, लेकिन अधिकारियों को गिरफ्तारी के खतरे के तहत करदाताओं को भुगतान करने के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए।
    कोर्ट ने चेतावनी दी कि कर भुगतान के लिए जबरदस्ती या धमकी देना मौलिक अधिकारों और कानून के शासन का उल्लंघन होगा।

8. अग्रिम जमानत:

  • कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) FIR दर्ज होने से पहले भी दी जा सकती है, बशर्ते कि गिरफ्तारी का उचित आशंका हो। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए, और अग्रिम जमानत मनमानी गिरफ्तारी के खिलाफ एक महत्वपूर्ण सुरक्षा उपाय है।

     

  • निष्कर्ष:

    सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कस्टम्स एक्ट और जीएसटी एक्ट के तहत गिरफ्तारी की शक्ति के प्रयोग के लिए एक विस्तृत ढांचा प्रदान करता है। कोर्ट ने कानूनी सुरक्षा उपायों के सख्त पालन की आवश्यकता पर जोर दिया ताकि व्यक्तियों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की जा सके, साथ ही यह सुनिश्चित किया जाए कि गिरफ्तारी की शक्ति का दुरुपयोग न हो। यह फैसला कर कानूनों के प्रभावी प्रवर्तन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि गिरफ्तारी की शक्ति का प्रयोग जिम्मेदारी और कानून के शासन के अनुरूप किया जाए।

    📌 मुख्य संदेश:
    ✅ गिरफ्तारी से पहले उचित कारण और दस्तावेज अनिवार्य
    ✅ गिरफ्तारी के बाद वकील से मिलने का अधिकार
    ✅ CrPC की प्रक्रिया का पालन जरूरी
    ✅ न्यायिक समीक्षा का अधिकार
    ✅ जबरदस्ती "स्वैच्छिक भुगतान" नहीं लिया जा सकता

👉 यह निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि GST अधिकारियों के पास गिरफ्तारी की शक्ति रहे, लेकिन वे इसका दुरुपयोग न कर सकें . 


Thursday, 20 February 2025

Amendment to Section 107(6) of the CGST Act, 2017: Pre-Deposit Requirement for Penalty Appeals


The provided text is an amendment to Section 107(6) of the CGST Act, 2017, which deals with the pre-deposit requirement for filing an appeal. Here’s what the amendment states:

1. Before the amendment: The provision required a pre-deposit of 10% of the disputed tax amount to file an appeal against an order.

2. After the amendment: A new condition is introduced for appeals against penalty orders where no tax is involved.

If the appeal is against an order that demands only a penalty without any tax liability, then the appellant must pre-deposit 10% of the penalty amount before filing the appeal.

Impact of this Amendment:

This ensures that even penalty-only appeals require a pre-deposit, similar to tax-related appeals.

It discourages frivolous appeals against penalty orders.

The appeal will not be entertained unless 10% of the penalty is paid upfront.

This change aligns with the overall structure of pre-deposit requirements in tax appeals, ensuring some payment before the appeal process begins.

पहले Taxpayer को अपील के वक्त 10% Pre Deposit सिर्फ़ Tax पर देना होता था और अगर किसी की Demand सिर्फ़ पेनल्टी की होती थी तो उस केस में अपील में कोई भी Predeposit नहीं लगता था सिवाय 129 Eway Case कोई छोड़कर 

अब इस Pre Deposit को S129 की जगह सब तरह की Penalty Order पर लागू कर दिया है

और अब अगर Taxpayer की Demand सिर्फ़ पेनल्टी की है और उसमे टैक्स अगर नहीं है तो अब अपील के वक़्त उनको 10% Predeposit Penalty पर देना होगा (चाहे Eway Bill का केस हो या कोई और हो) 

इसका मतलब पहले जो Detained S129 में जो 25% Pre Deposit था, वो भी अब 10% हो गया है 

ये बदलाव तब लागू होगे जब सरकार बजट को Notity करेगी बाद में नोटिफिकेशन के ज़रिए 

Refer S124 Of Finanace Act Page 67 

Tuesday, 18 February 2025

GSTN ने झारखंड और अंडमान व निकोबार द्वीप समूह में 15 फरवरी 2025 से बायोमेट्रिक-आधारित आधार प्रमाणीकरण और दस्तावेज़ सत्यापन की सुविधा लागू की है

झारखंड और अंडमान व निकोबार द्वीप समूह में, बायोमेट्रिक-आधारित आधार प्रमाणीकरण और दस्तावेज़ सत्यापन के बिना अब जीएसटी पंजीकरण जारी नहीं होगा। यदि आवेदनकर्ता को ओटीपी-आधारित प्रमाणीकरण की अनुमति नहीं मिलती है, तो उन्हें निर्धारित जीएसटी सुविधा केंद्र (GSK) पर जाकर बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण और दस्तावेज़ सत्यापन कराना अनिवार्य होगा। इस प्रक्रिया के पूर्ण होने के बाद ही आवेदन संदर्भ संख्या (ARN) जारी की जाएगी, जिससे पंजीकरण प्रक्रिया आगे बढ़ेगी। 

Advisory for Biometric-Based Aadhaar Authentication and Document Verification for GST Registration Applicants of Jharkhand and Andaman and Nicobar Islands.



GSTN ने झारखंड और अंडमान व निकोबार द्वीप समूह में 15 फरवरी 2025 से बायोमेट्रिक-आधारित आधार प्रमाणीकरण और दस्तावेज़ सत्यापन की सुविधा लागू की है। अब आवेदनकर्ताओं को पंजीकरण के दौरान OTP-आधारित प्रमाणीकरण या जीएसटी सुविधा केंद्र (GSK) पर जाकर बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण और दस्तावेज़ सत्यापन कराना होगा। यदि GSK पर जाने की आवश्यकता हो, तो आवेदक को ईमेल में दिए गए लिंक से अपॉइंटमेंट बुक करना होगा। सत्यापन के बाद ही ARN जारी किया जाएगा।

Advisory



*बायोमेट्रिक-आधारित आधार प्रमाणीकरण और दस्तावेज़ सत्यापन* 

नियम 8 में संशोधन: अब डेटा विश्लेषण और जोखिम मानकों के आधार पर आवेदनकर्ता की पहचान की जाएगी। आवेदन के दौरान बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण और दस्तावेज़ सत्यापन किया जाएगा।

( NN-26/2022 Dated-26.12.2022 , Notification No. 12/2024-CT dated 10.07.2024 w.e.f. yet to be notified. , Notification No. 04/2023-CT dated 31.03.2023. )

लागू क्षेत्र: यह सुविधा 15 फरवरी 2025 से झारखंड और अंडमान व निकोबार द्वीप समूह में शुरू की गई है।

प्रमाणीकरण प्रक्रिया: आवेदन करने के बाद, आवेदक को ईमेल में दो संभावित लिंक मिल सकते हैं:

(a) OTP-आधारित आधार प्रमाणीकरण लिंक – इसमें मौजूदा प्रक्रिया के अनुसार आगे बढ़ सकते हैं।

(b) GSK पर अपॉइंटमेंट बुक करने का लिंक – इसमें आवेदक को निकटतम GST सुविधा केंद्र (GSK) पर बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण और दस्तावेज़ सत्यापन के लिए जाना होगा।

GSK अपॉइंटमेंट: यदि आवेदनकर्ता को GSK पर जाना आवश्यक है, तो उसे ईमेल में दिए गए लिंक के माध्यम से अपॉइंटमेंट बुक करनी होगी।

अपॉइंटमेंट बुकिंग: अपॉइंटमेंट बुक करने के बाद, आवेदक को ईमेल के माध्यम से अपॉइंटमेंट की पुष्टि मिलेगी, जिसमें GSK का पता और समय दिया जाएगा।

GSK पर दस्तावेज़: अपॉइंटमेंट के दिन आवेदक को निम्नलिखित दस्तावेज साथ लाने होंगे:

(a) अपॉइंटमेंट की पुष्टि ईमेल (प्रिंट या डिजिटल कॉपी)

(b) ईमेल में दिया गया अधिकार क्षेत्र विवरण

(c) मूल आधार कार्ड और पैन कार्ड

(d) आवेदन के साथ अपलोड किए गए मूल दस्तावेज़

बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण: GSK पर आवेदनकर्ता के बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण और दस्तावेज़ सत्यापन की प्रक्रिया पूरी की जाएगी।

ARN जेनरेशन: बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण और दस्तावेज़ सत्यापन पूरा होने के बाद ही Application Reference Number (ARN) जेनरेट होगा।

समय सीमा: आवेदक को अधिकतम अनुमत अवधि के भीतर अपॉइंटमेंट बुक करनी होगी, जो ईमेल में निर्दिष्ट होगी।

GSK संचालन: जीएसके के कार्य दिवस और समय राज्य/केंद्र शासित प्रदेश की प्रशासनिक दिशानिर्देशों के अनुसार होंगे।