(Advocate) ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~GST & INCOME TAX ============================================================================ Sharing of Information related to GST and INCOME TAX.
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Saturday, 26 April 2025
केंद्र सरकार ने लग्जरी वस्तुओं पर TCS लागू किया
CBIC notifies GSTAT(Procedure) Rules, 2025
Tuesday, 22 April 2025
Courts & SROs Must Report To Income Tax Authorities If Suits/Deeds Mention Cash Transactions Above ₹2 Lakh
Friday, 18 April 2025
लेट GST रिटर्न पर लेट फीस और सामान्य दंड दोनों नहीं लग सकते: मद्रास हाईकोर्ट का अहम निर्णय(मामला: Tvl. Jainsons Castors & Industrial Products बनाम Assistant Commissioner (ST))
In a notable judgment, the Madras High Court, in the case of Tvl. Jainsons Castors & Industrial Products vs. The Assistant Commissioner (ST), has ruled that taxpayers cannot be charged both a late fee and a general penalty for delayed filing of GST returns.
Key Highlights of the Ruling:
🔹Late Fee (Section 47, TNGST Act, 2017): Applicable for delays in filing GST returns.
🔹General Penalty (Section 125): Cannot be levied when a specific provision like Section 47 already addresses the default.
Government of India – CBIC Instruction No. 03/2025: Standardized and Simplified GST Registration Guidelines
Download here
Instructions for processing of applications for GST registration
Tuesday, 15 April 2025
GST में "Bill to Ship to" मॉडल एक विस्तृत व्यावसायिक व्यवस्था और कानूनी विश्लेषण
"Bill to Ship to" Model under GST
1. परिभाषा (Definition):
“Bill to Ship to” मॉडल वह व्यवस्था है जिसमें माल की आपूर्ति भले ही एक व्यक्ति को की जा रही हो, परंतु भेजा वह किसी अन्य व्यक्ति को जा रहा हो। इसमें एक सप्लायर, एक खरीदार (जो बिल करवाता है) और एक रिसीवर (जिसे माल भेजा जाता है) होता है।
⚖️ 2. कानूनी प्रावधान (Legal Provision):
✅ Section 10(1)(b) – IGST Act, 2017:
"जहाँ किसी थर्ड पार्टी के निर्देश पर सप्लायर द्वारा माल किसी तीसरे व्यक्ति को भेजा जाता है, तो ऐसा माना जाएगा कि थर्ड पार्टी को ही माल सप्लाई किया गया है और Place of Supply वही होगा जहाँ थर्ड पार्टी का प्रिंसिपल प्लेस ऑफ बिजनेस है।"
मुख्य बिंदु:
-
तीन पार्टी होती हैं: Supplier, Bill-to पार्टी, Ship-to पार्टी
-
सप्लाई मान ली जाती है Bill-to पार्टी को
-
GST की दृष्टि से दो सप्लाइज़ मानी जाती हैं
🔷 3. सैद्धांतिक ढांचा (Theoretical Framework):
तत्व | विवरण |
---|---|
Supplier | जो वस्तु सप्लाई कर रहा है |
Bill To Party | जो वस्तु खरीद रहा है (वास्तविक ग्राहक) |
Ship To Party | जिसे वस्तु डिलीवर की जा रही है (अक्सर ग्राहक का ग्राहक) |
Place of Supply | Bill To पार्टी के लोकेशन के आधार पर निर्धारित होता है |
🔶 4. ट्रांजैक्शन के प्रकार (Nature of Supply):
सप्लायर | खरीदार | रिसीवर | सप्लाई का प्रकार | लागू कर |
---|---|---|---|---|
राजस्थान | राजस्थान | गुजरात | Bill To पार्टी (राजस्थान) के अनुसार Intra-state | CGST + SGST |
राजस्थान | गुजरात | गुजरात | Bill To पार्टी (गुजरात) के अनुसार Intra-state | CGST + SGST |
गुजरात | राजस्थान | पंजाब | Inter-state | IGST |
⚠️ माल भले ही एक राज्य से दूसरे राज्य जाए, अगर सप्लायर और बिलिंग पार्टी एक ही राज्य में हैं तो सप्लाई Intra-state मानी जाएगी।
📊 5. विस्तृत उदाहरण (Advanced Example with Numbers):
पार्टी विवरण:
-
A Ltd. (Supplier): अजमेर, राजस्थान
-
B Ltd. (Bill To): जयपुर, राजस्थान
-
C Ltd. (Ship To): अहमदाबाद, गुजरात
माल का मूल्य: ₹1,00,000
GST दर: 18%
🧾 Tax Invoice by A Ltd. (to B Ltd.):
-
Bill to: B Ltd., Jaipur
-
Ship to: C Ltd., Ahmedabad
-
Tax: CGST ₹9,000 + SGST ₹9,000
-
Total Invoice: ₹1,18,000
🧾 Tax Invoice by B Ltd. (to C Ltd.):
-
Tax: IGST ₹18,000
-
Total Invoice: ₹1,18,000
📜 6. आवश्यक दस्तावेज़ (Documentation Required):
दस्तावेज़ | विवरण |
---|---|
Tax Invoice | "Bill to" और "Ship to" दोनों का स्पष्ट उल्लेख |
E-Way Bill | "Dispatch From", "Ship To", "Bill To", "Invoice No." स्पष्ट रूप से लिखें |
Transport Document | जैसे लोरी रसीद (LR), जिसमें delivery address सही हो |
Purchase Order Copy | ऑर्डर की स्पष्ट chain को समझने के लिए |
💼 7. व्यापारिक उपयोग के केस (Real-World Use Cases):
-
Distributors/Stockists: बड़ी कंपनियां डिस्ट्रीब्यूटर को सामान भेजती हैं, लेकिन माल सीधे रिटेलर को भेजा जाता है।
-
E-Commerce: Amazon, Flipkart आदि में बिलिंग कंपनी होती है और माल ग्राहक को भेजा जाता है।
-
Job Work/Third Party Manufacturing: Principal manufacturer के निर्देश पर माल Job worker को भेजा जाता है।
-
Exports: एक व्यापारी विदेशी पार्टी को माल बेचता है लेकिन माल directly port या logistic provider को भेजा जाता है।
📋 8. Bill to Ship to vs Third Party Billing – भ्रम न करें:
प्रकार | उद्देश्य | सप्लाई का आधार | Place of Supply |
---|---|---|---|
Bill to Ship to | तीसरे व्यक्ति के निर्देश पर माल भेजना | Section 10(1)(b) | Bill to पार्टी |
Third Party Billing | कमीशन एजेंट, intermediary | Section 2(93), agent | Actual delivery party |
⚠️ 9. ध्यान देने योग्य बातें (Important Considerations):
-
सही तरीके से GSTIN और Address Invoice और E-way bill में लिखें
-
Delivery Proof रखें (POD, LR Copy, Delivery Challan)
-
GSTR-1 और GSTR-3B में दोनों सप्लाइज़ को अलग-अलग रिपोर्ट करें
-
Cross-state सप्लाई में mismatches से बचें
📌 10. निष्कर्ष (Conclusion):
“Bill to Ship to” एक ऐसा प्रावधान है जो GST कानून को व्यवहारिक वास्तविकताओं के अनुकूल बनाता है। यह व्यापारियों को लॉजिस्टिक लागत घटाने, माल की तेज डिलीवरी, और क्लियर टैक्स अनुपालन की सुविधा देता है।
✅ कानूनी समर्थन: Section 10(1)(b) – IGST Act
✅ लाभ: Cost saving, simplicity, documentation clarity
✅ उपयोग: Supply chain, third party orders, e-commerce, manufacturing
Wednesday, 9 April 2025
Delhi High Court Ruling: Refund Cannot Be Withheld Merely by Invoking Section 54(11) Without Pending Appeal – Shalender Kumar vs Commissioner Delhi West CGST
Saturday, 5 April 2025
मृत व्यक्ति पर जीएसटी मांग अवैध: कानूनी उत्तराधिकारी को नोटिस देना अनिवार्य – इलाहाबाद हाईकोर्ट"(केस: अमित कुमार सेठिया (मृतक) बनाम उत्तर प्रदेश राज्य)
पार्टनर को वेतन, ब्याज, कमीशन या बोनस दे रहे हैं?तो अब संभल जाइए!1 अप्रैल 2025 से लागू नया नियम –₹20,000 पार होते ही TDS जरूरी!
NewsLetter
April 2025
विषय: पार्टनरशिप फर्म में पार्टनर को भुगतान पर TDS – नया नियम धारा 194T
कॉल कनेक्ट होती है...
एडवोकेट सरफ़राज़ (Tax Consultant):
अरहम जी, कैसे हैं?
अरहम (पार्टनर – M/s Arham & Co.):
बिलकुल सर, अच्छा हूं। बस ये नया सेक्शन 194T समझ नहीं आया। क्या अब हमें पार्टनर को पेमेंट पर भी TDS काटना होगा?
सरफ़राज़:
जी हां, बिल्कुल! 1 अप्रैल 2025 से Income Tax Act में धारा 194T लागू हो चुकी है। अब यदि फर्म किसी भी पार्टनर को वेतन, ब्याज, पारिश्रमिक, कमीशन या बोनस के रूप में साल में ₹20,000 से अधिक भुगतान करती है, तो उस पर 10% TDS काटना अनिवार्य है।
(तभी कॉल पर रेयान भी जुड़ते हैं)
रेयान :
सर, क्या ये नियम सभी फर्म्स पर लागू होगा, चाहे उनका टर्नओवर कुछ भी हो?
सरफ़राज़:
बिलकुल! ये नियम सभी प्रकार की पार्टनरशिप फर्म्स पर लागू होगा — भले ही फर्म टैक्स ऑडिट के अंतर्गत आती हो या नहीं। अब TAN लेना भी जरूरी हो जाएगा।
केवल दो केस जो सब कुछ स्पष्ट कर देंगे:
Case 1: कुल भुगतान ₹19,000 (TDS नहीं कटेगा)
अरहम:
हमने एक पार्टनर को अप्रैल से दिसंबर तक –
- ₹10,000 ब्याज,
- ₹5,000 पारिश्रमिक,
- ₹4,000 बोनस दिया।
सरफ़राज़:
यहां कुल भुगतान ₹19,000 हुआ, जो ₹20,000 से कम है, इसलिए इस केस में TDS नहीं काटना होगा। लेकिन जैसे ही ये लिमिट क्रॉस होगी, TDS शुरू करना अनिवार्य हो जाएगा।
Case 2: कुल भुगतान ₹35,000 (TDS कटेगा)
रेयान:
अगर हमने दूसरे पार्टनर को –
- ₹20,000 वेतन,
- ₹10,000 ब्याज,
- ₹5,000 कमीशन दिया।
सरफ़राज़:
यहां कुल भुगतान हुआ ₹35,000, जो कि लिमिट से ऊपर है।
इसलिए पूरे ₹35,000 पर 10% TDS = ₹3,500 काटकर सरकार को जमा करना होगा।
ध्यान रहे, TDS भुगतान के समय या खाते में क्रेडिट करते समय — जो पहले हो — तभी काटा जाए।
TAN लेना क्यों जरूरी है?
अरहम:
तो इसके लिए TAN लेना जरूरी होगा?
सरफ़राज़:
जी बिल्कुल! बिना TAN आप न तो TDS काट सकते हैं, न जमा कर सकते हैं और न ही TDS रिटर्न फाइल कर पाएंगे।
अभी TAN के लिए आवेदन करना सबसे बेहतर रहेगा, ताकि आगे चलकर परेशानी न हो।
इस कॉल से निकली अहम बात:
यदि आपकी फर्म पार्टनर को वेतन, ब्याज, कमीशन, पारिश्रमिक या बोनस के रूप में भुगतान करती है और वो कुल ₹20,000 सालाना से ज्यादा हो जाता है, तो 10% TDS काटना जरूरी है। इसके लिए TAN अनिवार्य है।
क्या करें अभी?
✅ TAN के लिए तुरंत आवेदन करें
✅ पार्टनर को होने वाले भुगतान की योजना बनाएं
✅ सही समय पर TDS काटें, जमा करें और रिटर्न भरें (Form 26Q)
संपर्क करें
एडवोकेट सरफ़राज़ अंसारी
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