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Saturday, 4 October 2025

अक्टूबर से जीएसटी रिटर्न फाइलिंग का नया दौर – जहाँ GSTR-1 की छोटी सी गलती सीधे GSTR-3B में लॉक होकर कारोबारियों और Tax Professional के लिए बड़ा संघर्ष बन सकती है


अगर GSTR-1 में गलती हो जाती है, तो वह सीधे GSTR-3B में दिखाई देगी। वहाँ पर बदलाव करने का कोई मौका नहीं होगा।

अक्टूबर का आगमन ही कारोबारियों और Tax Professional दोनों के लिए एक सख्त याद दिलाने जैसा है। इस महीने की रिटर्न फाइलिंग के साथ बड़ा बदलाव आया है। अब नियम पहले से और भी कड़े हो गए हैं, यानी हर एंट्री को बहुत ध्यान से जाँचना ज़रूरी है।

QRMP स्कीम वाले: तिमाही फाइलिंग।
यह प्रक्रिया पहले से चलती आ रही थी। लेकिन अक्टूबर से स्थिति बदल गई है। अब आप GSTR-1 में जो भी सेल्स डिटेल्स डालेंगे, वही सीधे 3B में आ जाएंगी। 3B में जाकर उन्हें बदला नहीं जा सकेगा। यही सबसे बड़ा बदलाव है।

इसका मतलब क्या है?
अगर आपने GSTR-1 में गलती कर दी, तो वही गलती 3B में लॉक हो जाएगी। बाद में कोई सुधार संभव नहीं होगा। इसलिए GSTR-1 भरते समय विशेष सावधानी ज़रूरी है। एक भी गलत एंट्री आपके टैक्स लायबिलिटी पर सीधा असर डाल देगी।

सुधार कैसे करें?
इसके लिए GSTR-1A लाया गया है। मान लीजिए आपने GSTR-1 में गलती की, तो उसे GSTR-1A के ज़रिए ठीक कर सकते हैं। लेकिन शर्त यह है कि सुधार 3B फाइल करने से पहले करना होगा। उसके बाद सुधार का कोई मौका नहीं मिलेगा। फिर वह गलती अगले महीने की रिटर्न में ही एडजस्ट की जा सकेगी।

ITC को लेकर स्पष्टता:

बहुत से लोगों को यह भ्रम है कि “अब GSTR-2B ऑटो-जेनरेट नहीं होगा” — यह गलत है। GSTR-2B पहले की तरह ही उपलब्ध रहेगा। आप उसे देख सकते हैं, डाउनलोड कर सकते हैं और ITC उसी से ऑटो-पॉप्युलेट होगा। यानी ITC की प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं है।

फाइलिंग तरीका (अक्टूबर से):

1. पोर्टल में लॉगिन करके सबसे पहले नोटिस और ऑर्डर देखें।
2. उसके बाद सुनिश्चित करें कि GSTR-1 सही से भरा गया है।
3. तभी आगे बढ़कर 3B फाइल करें।

अगर यह स्टेप्स अपनाएँगे तो गलती से बच सकेंगे।

अब GSTR-1 ही असली मास्टर रिकॉर्ड है।
3B उसी से बनेगा।
मैनुअल दखल की गुंजाइश खत्म हो गई है।
filing में अब “सटीकता ही सुरक्षा” है।

व्यापारियों और टैक्स प्रोफेशनल्स दोनों को साफ समझ लेना चाहिए कि फाइलिंग केवल फॉर्मैलिटी नहीं है, बल्कि यह वित्तीय शुद्धता और अनुपालन का प्रमाण है। एक गलती से न केवल टैक्स लायबिलिटी, बल्कि क्रेडिट और रिफंड पर भी असर पड़ सकता है।

इसलिए चाहे आप मासिक टैक्सपेयर हों या QRMP स्कीम वाले, इस अक्टूबर की फाइलिंग को अतिरिक्त गंभीरता से लें।

Friday, 26 September 2025

Supreme Court on Time-Barred Assessments: Shiv Steels vs State of Assam

समय-सीमा पार आकलन पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय : शिव स्टील्स बनाम असम राज्य
⚖ मामला – Shiv Steels vs State of Assam (SC, 11-Sep-2025)

यह विवाद Assam General Sales Tax Act, 1993 की Section 19 (normal assessment की limitation) और Section 21 (reassessment / escaped assessment) के interpretation पर था।

Assessment years: 2003-04 से 2005-06

🔹 तथ्य
1. Revenue ने assessee का assessment किया लेकिन वो Section 19 में दिए गए limitation period से बाहर हो गया।
👉 इसलिए concerned authority ने कहा कि assessment time-barred है और invalid कर दिया।
2. बाद में Revenue ने Commissioner से sanction (21-3-2011) लिया और re-assessment order (31-3-2011) पास कर दिया, Section 21 का सहारा लेते हुए।
3. Gauhati High Court ने कहा कि Section 21 के तहत यह reassessment valid है (क्योंकि sanction मिल गया था और 4 साल की extended period में order पास हो गया)।
4. Supreme Court ने High Court के फैसले को quash कर दिया।

🔹 Supreme Court का Reasoning
Section 19: Normal assessment का limitation fix करता है।
एक बार अगर assessment उसी समय सीमा में नहीं किया गया, तो वो invalid माना जाएगा।

Section 21: Escaped assessment / reassessment की power देता है, लेकिन ये तभी use हो सकता है जब पहले कोई valid assessment हुआ हो या कुछ escaped हो।

यहाँ situation यह थी:
Assessment पहले ही time-barred घोषित हो चुका था।
यानी valid assessment था ही नहीं।
ऐसे में Revenue Section 21 का सहारा नहीं ले सकता, क्योंकि वो मानो null & void assessment को revive करने जैसा है।

👉 SC ने साफ कहा:
अगर assessment Section 19 के तहत limitation से बाहर हो चुका है और invalid है, तो Revenue Section 21 के ज़रिए उसे दोबारा नहीं कर सकता।

🔹 Principles Evolved

1. Limitation substantive law है – Assessment power limitation से बंधा हुआ है।
2. Extended limitation का इस्तेमाल rare होना चाहिए, routine में नहीं।
3. एक बार assessment time-barred हो गया तो उसको validate करने का कोई shortcut नहीं है।
4. Revenue को procedural fairness और certainty को respect करना होगा।


🔹 GST Context में Relevance

GST में भी यही issue आता है:

Section 73 → normal period (3 साल)।

Section 74 → extended period (5 साल, fraud/suppression के cases)।

Practical problem: Officers कई बार जब Section 73 की limitation खत्म हो जाती है, तब routine में Section 74 का notice जारी कर देते हैं, बिना किसी fraud/suppression के आधार के।

Supreme Court का यह principle GST पर भी लागू किया जा सकता है:

Extended period exception है, rule नहीं।

अगर सामान्य limitation खत्म हो गई तो officer बाद में Section 74 से case revive नहीं कर सकता, जब तक कि fraud या suppression का specific evidence न हो।

Supreme Court ने कहा कि time-barred assessment को Section 21 (reassessment) के जरिए जीवित नहीं किया जा सकता। Limitation एक substantive right है। इसी logic को GST cases में Section 73 और Section 74 पर भी लागू किया जा सकता है – यानी extended period केवल genuine मामलों में ही, न कि routine में।


Thursday, 18 September 2025

GST दरों में 22 सितम्बर 2025 से होने वाले बदलाव को देखते हुए Legal Metrology (Packaged Commodities) Rules, में कुछ राहत

GST दरों में बदलाव पर सरकार द्वारा पैकेजिंग नियमों में राहत

Revised MRP Stickers वैकल्पिक – कंपनियां चाहें तो पुराने पैकेज पर नया MRP स्टिकर लगा सकती हैं, लेकिन यह अनिवार्य नहीं है।

अखबार में विज्ञापन की ज़रूरत नहीं – Revised MRP को अखबार में छपवाने का नियम हटाया गया, केवल प्राइस लिस्ट wholesalers/retailers और Legal Metrology विभाग को देना होगा।

पुरानी पैकेजिंग का इस्तेमाल – 31 मार्च 2026 तक या स्टॉक खत्म होने तक पुराने रैपर/पैकेज इस्तेमाल किए जा सकते हैं, बस नया MRP सही करके लिखना होगा।

Consumer Awareness – कंपनियों को सलाह दी गई है कि revised GST rates की जानकारी उपभोक्ताओं और डीलरों तक पहुँचाएँ (सोशल मीडिया, प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से)।

Industry का compliance burden कम करना और उपभोक्ताओं को कम GST का लाभ दिलाना।

Friday, 12 September 2025

GST दर बदलने के बाद वस्तुओं की कीमत की मासिक रिपोर्ट

GST दर बदलने के बाद वस्तुओं की कीमत की मासिक रिपोर्ट 


यह पत्र इसलिए निकला है क्योंकि 22 सितम्बर 2025 से सरकार ने GST की दरें बदल दी हैं। सरकार यह देखना चाहती है कि टैक्स बदलने के बाद चीज़ों की कीमत (MRP) पर क्या असर पड़ा। सभी GST ऑफिस (CGST Zones) को अपने-अपने इलाके से दुकानदारों, व्यापारियों और बाज़ार संघों से वस्तुओं के दाम का डेटा इकट्ठा करना है। हर चीज़ का नाम और ब्रांड लिखकर उसकी कीमत 22 सितम्बर 2025 से पहले और उसके बाद बतानी होगी। Format ऐसा होगा: | S. No | वस्तु | ब्रांड | MRP (22.9.2025 से पहले) | MRP (22.9.2025 के बाद) | पहली रिपोर्ट 30 सितम्बर 2025 तक भेजनी है, उसके बाद हर महीने की रिपोर्ट 20 तारीख तक भेजनी होगी, आखिरी रिपोर्ट मार्च 2026 तक देनी है। रिपोर्ट ईमेल से budget-cbec@nic.in पर भेजनी है। सरकार यह जांचना चाहती है कि GST दरें बदलने से चीज़ें महंगी हुईं या सस्ती।


Tuesday, 12 August 2025

धारा 12, 12A, 12AA एवं 12AB – पंजीकरण व अनुपालन प्रक्रिया (ऑनलाइन e-Filing Portal सहित)

आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 11

“धार्मिक या धर्मार्थ प्रयोजनों हेतु धारण की गई संपत्ति से आय”


1. परिचय

धारा 11 उन ट्रस्टों/संस्थाओं को आयकर में छूट प्रदान करती है, जिनकी संपत्ति पूरी तरह या आंशिक रूप से धर्मार्थ (Charitable) या धार्मिक (Religious) उद्देश्यों के लिए ट्रस्ट में धरी हो, और जो कुछ शर्तों का पालन करते हैं।


2. लागू होने की शर्तें

  • ट्रस्ट या संस्था का पंजीकरण धारा 12AB (पूर्व में 12AA) के अंतर्गत होना चाहिए।

  • संपत्ति ट्रस्ट या वैधानिक दायित्व के तहत धर्मार्थ/धार्मिक प्रयोजनों के लिए धरी हो।

  • उद्देश्य:

    • धर्मार्थ प्रयोजन (जैसा कि धारा 2(15) में परिभाषित)

    • धार्मिक प्रयोजन

    • या दोनों


3. मुख्य प्रावधान

(a) भारत में प्रयुक्त आय पर छूट

  • ऐसी संपत्ति से प्राप्त आय भारत में प्रयुक्त की जाने पर छूट योग्य है।

  • कम से कम 85% आय का उपयोग उसी वर्ष धर्मार्थ/धार्मिक प्रयोजन में होना चाहिए।

  • शेष 15% आय बिना किसी शर्त के रखी जा सकती है।


(b) आय का संचय (Accumulation)

  • यदि आय उसी वर्ष में प्रयुक्त नहीं होती और भविष्य में प्रयुक्त करने हेतु रखी जाती है:

    • अधिकतम 5 वर्षों तक संचय की अनुमति।

    • Form 10 में कारण और अवधि का उल्लेख करते हुए, ITR की नियत तिथि से पहले जमा करना आवश्यक।


(c) पूंजीगत लाभ पर छूट

  • यदि ट्रस्ट की पूंजीगत संपत्ति बेची जाती है और प्राप्त धनराशि अन्य पूंजीगत संपत्ति में पुनर्निवेश की जाती है, तो पूंजीगत लाभ को प्रयुक्त माना जाएगा।


(d) विदेश में प्रयुक्त आय

  • विदेश में प्रयुक्त आय पर छूट नहीं, सिवाय:

    • ट्रस्ट का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय कल्याण हो, जिसमें भारत की रुचि हो।

    • CBDT से पूर्व अनुमोदन हो।


(e) स्वैच्छिक योगदान

  • विशेष निर्देश के साथ प्राप्त स्वैच्छिक अंशदान (कॉर्पस हेतु) – धारा 11(1)(d) के अंतर्गत पूर्ण छूट।

  • अन्य स्वैच्छिक अंशदान – आय मानी जाएगी, लेकिन यदि प्रयुक्त होती है तो धारा 11 में छूट।


4. छूट पाने की आवश्यक शर्तें

  1. ट्रस्ट का पंजीकरण धारा 12AB में होना चाहिए।

  2. सही तरीके से खाताबही (Books of Account) रखना आवश्यक।

  3. आय बुनियादी छूट सीमा से अधिक हो तो ऑडिट आवश्यक (Form 10B/10BB)।

  4. निधि केवल धारा 11(5) में निर्दिष्ट निवेश माध्यमों में ही निवेश हो।

  5. आय का कोई भाग विशेष व्यक्ति (धारा 13(1)(c) के अनुसार) के लाभ हेतु न हो।


5. उप-धाराएँ

  • धारा 11(1) – भारत में प्रयुक्त आय।

  • धारा 11(2) – 15% से अधिक संचय की अनुमति, शर्तों सहित।

  • धारा 11(3) – संचयित आय का गैर-प्रयोग।

  • धारा 11(4) – ट्रस्ट द्वारा संचालित व्यवसाय से आय।

  • धारा 11(5) – निवेश के अनुमोदित साधन।


6. उदाहरण

मान लीजिए एक धर्मार्थ ट्रस्ट की आय ₹10,00,000 है:

  • कम से कम ₹8,50,000 (85%) उसी वर्ष धर्मार्थ/धार्मिक कार्य में लगानी होगी।

  • शेष ₹1,50,000 बिना शर्त रखी जा सकती है।

  • यदि ट्रस्ट ₹4,00,000 भविष्य में अस्पताल निर्माण हेतु रखना चाहता है, तो Form 10 दाखिल करना होगा और निवेश धारा 11(5) के तहत करना होगा।

                ┌───────────────────────────┐

                │  क्या ट्रस्ट/संस्था         │

                │  धारा 12AB में पंजीकृत है? │

                └───────────┬───────────────┘

                            │

             हाँ ───────────┘

                            │

              ┌─────────────▼─────────────┐

              │  क्या आय ट्रस्ट की         │

              │  संपत्ति से प्राप्त हुई है │

              │  जो धर्मार्थ/धार्मिक हेतु  │

              │  धरी है?                   │

              └─────────────┬─────────────┘

                            │

             हाँ ───────────┘

                            │

         ┌──────────────────▼───────────────────┐

         │  आय का कम से कम 85% भारत में          │

         │  धर्मार्थ/धार्मिक प्रयोजन में          │

         │  उसी वर्ष खर्च होना चाहिए।            │

         └──────────────────┬───────────────────┘

                            │

        ┌───────────हाँ─────┘

        │

        ▼

   ┌───────────────┐

   │  छूट योग्य आय │

   └───────────────┘


                            │

            नहीं ────────────┘

                            │

     ┌──────────────────────▼──────────────────────┐

     │ शेष राशि (15% से अधिक) संचय करने हेतु:       │

     │ - अधिकतम 5 वर्ष तक                          │

     │ - Form 10 दाखिल करना                        │

     │ - निवेश धारा 11(5) के तहत                   │

     └──────────────────────┬──────────────────────┘

                            │

                ┌───────────▼───────────┐

                │  क्या शर्तें पूरी हैं? │

                └───────────┬───────────┘

                            │

              हाँ ──────────┘

                            │

                   ┌────────▼────────┐

                   │  छूट योग्य आय   │

                   └─────────────────┘

धारा 12 – ट्रस्ट या संस्थाओं की अंशदान से आय

(1) स्वैच्छिक अंशदान की आय

  • अगर कोई ट्रस्ट या संस्था, जो पूरी तरह से धार्मिक या परोपकारी (charitable) उद्देश्यों के लिए बनाई गई है,
    कोई स्वैच्छिक अंशदान प्राप्त करती है,
    तो उसे धारा 11 के अंतर्गत ट्रस्ट की संपत्ति से प्राप्त आय माना जाएगा।

  • लेकिन कॉर्पस (Corpus) दान — यानी ऐसे दान जिनके बारे में दाता ने स्पष्ट निर्देश दिया हो कि यह राशि ट्रस्ट के स्थायी कोष में जोड़ी जाए — को इसमें शामिल नहीं किया जाएगा।

  • इन पर धारा 11 और धारा 13 के प्रावधान लागू होंगे।


(2) सेवाओं का मूल्य (Value of Services)

  • अगर कोई धार्मिक/परोपकारी ट्रस्ट जो अस्पताल, चिकित्सा संस्थान या शैक्षणिक संस्थान चला रहा है,
    अपने संस्थान की मुफ्त या रियायती दर पर सेवाएं देता है —
    और वह सेवाएं उन व्यक्तियों को दी जाती हैं जो धारा 13(3) में बताए गए related persons हैं (जैसे संस्थापक, ट्रस्टी, मैनेजर, उनके रिश्तेदार आदि),
    तो उस सेवा का मूल्य उसी साल की आय मानी जाएगी और उस पर टैक्स लगेगा।

  • यहां "मूल्य" से मतलब है — वह फायदा या सुविधा जो मुफ्त या रियायती दर पर दी गई हो।


(3) गुजरात भूकंप राहत के लिए प्राप्त दान (Special Rule)

  • धारा 80G(2)(d) के तहत गुजरात भूकंप राहत के लिए जो दान ट्रस्ट या संस्था को मिला है:

    1. अगर उस दान का आय-व्यय का विवरण समय पर निर्धारित प्राधिकारी को नहीं दिया गया,

    2. या उस दान का उपयोग राहत कार्यों के अलावा किसी और उद्देश्य में किया गया,

    3. या 31 मार्च 2004 तक Prime Minister's National Relief Fund में ट्रांसफर नहीं किया गया,
      तो वह राशि उसी साल की आय मानी जाएगी और उस पर टैक्स लगेगा।


संक्षिप्त फ्लोचार्ट

      स्वैच्छिक अंशदान
        │
        ├─► कॉर्पस दान? ──► हाँ → धारा 12(1) में शामिल नहीं
        │                   │
        │                   नहीं
        │
        ├─► पूरी तरह धार्मिक/परोपकारी ट्रस्ट को मिला? → हाँ → धारा 11 के तहत आय मानी जाएगी
        │
        ├─► मुफ्त/रियायती सेवा Related Person को? → हाँ → धारा 12(2) के तहत आय मानी जाएगी
        │
        └─► गुजरात भूकंप राहत के लिए दान, शर्त पूरी नहीं? → हाँ → धारा 12(3) के तहत आय मानी जाएगी

धारा 12A – धारा 11 और 12 लागू होने की शर्तें

धारा 11 और 12 के तहत ट्रस्ट/संस्था की आय पर छूट तभी मिलेगी जब नीचे दी गई शर्तें पूरी हों:


1. पंजीकरण से संबंधित शर्तें

(a) पुराने प्रावधान (1 जुलाई 1973 से पहले या निर्माण के 1 वर्ष के भीतर)

  • ट्रस्ट/संस्था को प्रिस्क्राइब्ड फॉर्म और तरीके से Principal Commissioner / Commissioner के पास पंजीकरण के लिए आवेदन करना होगा।

  • अगर देरी से आवेदन किया है, तो छूट:

    1. निर्माण की तारीख से मिलेगी, अगर अधिकारी को लिखित कारण से संतोष हो कि देरी उचित कारणों से हुई।

    2. अन्यथा आवेदन वाले वित्तीय वर्ष के पहले दिन से मिलेगी।

  • यह प्रावधान 1 जून 2007 के बाद लागू नहीं।


(aa) 1 जून 2007 के बाद

  • आवेदन प्रिस्क्राइब्ड फॉर्म और तरीके से करना होगा।

  • पंजीकरण धारा 12AA में होना चाहिए।


(ab) अगर ऑब्जेक्ट्स बदले

  • अगर पंजीकरण मिलने के बाद ट्रस्ट/संस्था के उद्देश्यों (objects) में बदलाव हुआ है और वे पंजीकरण की शर्तों से मेल नहीं खाते,
    तो 30 दिनों में आवेदन कर पुनः पंजीकरण लेना होगा।


(ac) नए पंजीकरण के केस

  • निम्न परिस्थितियों में प्रिस्क्राइब्ड फॉर्म व तरीके से आवेदन करना होगा और पंजीकरण धारा 12AB में होगा:

    1. पुराने 12A/12AA पंजीकृत ट्रस्ट — 1 अप्रैल 2021 से 3 महीने के भीतर।

    2. 12AB पंजीकृत/10(23C) अनुमोदित और पंजीकरण/अनुमोदन की अवधि समाप्त हो रही है — समाप्ति से 6 महीने पहले।

    3. प्रोविजनली पंजीकृत — समाप्ति से 6 महीने पहले या गतिविधि शुरू होने के 6 महीने के भीतर (जो पहले हो)।

    4. धारा 11(7) की पहली प्रोविजो के कारण पंजीकरण निष्क्रिय — संबंधित AY से 6 महीने पहले।

    5. ऑब्जेक्ट्स में गैर-अनुरूप बदलाव — 30 दिनों में।

    6. अन्य केस:

      • गतिविधि शुरू नहीं हुई: संबंधित AY से 1 माह पहले।

      • गतिविधि शुरू हो चुकी है और पहले कोई छूट नहीं ली: कभी भी आवेदन कर सकते हैं।

  • देरी होने पर, अगर उचित कारण हो, तो अधिकारी देरी माफ कर सकते हैं।


2. बुक्स और ऑडिट से संबंधित शर्तें

  • अगर कुल आय (बिना धारा 11 और 12 की छूट) नॉन-टैक्सेबल लिमिट से ज्यादा है:

    1. बुक्स और डॉक्यूमेंट्स निर्धारित तरीके और स्थान पर रखना।

    2. ऑडिट रिपोर्ट (सेक्शन 288(2) के तहत एकाउंटेंट द्वारा) सेक्शन 44AB में बताई गई समय-सीमा तक देना।


3. रिटर्न फाइलिंग की शर्त

  • धारा 139(4A) के तहत ITR समय पर फाइल करना (सेक्शन 139(1) या 139(4) के समय-सीमा में)।


4. आवेदन की तारीख से प्रभाव

  • 1 जून 2007 के बाद के आवेदन के लिए छूट:

    • उसी AY से मिलेगी जो आवेदन वाले FY के बाद आता है।

  • विशेष केस:

    1. धारा 12A(1)(ac)(i) — पहले से पंजीकरण वाले केस में पुरानी तारीख से छूट।

    2. धारा 12A(1)(ac)(iii) — प्रोविजनल पंजीकरण वाले केस में उसी AY से छूट जिसके लिए प्रोविजनल मिला था।


संक्षिप्त फ्लोचार्ट

धारा 11 और 12 की छूट
    │
    ├─► पंजीकरण आवेदन (सही समय और फॉर्मेट)
    │       │
    │       ├─► ऑब्जेक्ट्स बदले? → 30 दिनों में सूचना और पुन: पंजीकरण
    │       ├─► प्रोविजनल या रिन्यूअल के केस → समय-सीमा अनुसार आवेदन
    │       └─► देरी? → उचित कारण पर कंडोनेशन संभव
    │
    ├─► बुक्स और ऑडिट → हाँ
    ├─► ITR समय पर फाइल → हाँ
    │
    └─► वरना → धारा 11 और 12 की छूट नहीं मिलेगी


धारा 12AB – नये पंजीकरण की प्रक्रिया (Fresh Registration)

(धारा 12A(1)(ac) के तहत आवेदन प्राप्त होने पर)

1. आवेदन प्राप्त होने पर कार्रवाई

(a)

  • यदि आवेदन sub-clause (i) के तहत है →
    प्रधान आयकर आयुक्त/आयुक्त लिखित आदेश द्वारा 5 वर्ष के लिए पंजीकरण देंगे।
    (नोट: यदि पिछले 2 वर्षों की कुल आय ₹5 करोड़ से कम है तो यह अवधि 10 वर्ष होगी)

(b)

  • यदि आवेदन sub-clause (ii), (iii), (iv), (v) या item (B) of sub-clause (vi) के तहत है:

    1. ट्रस्ट/संस्था से आवश्यक दस्तावेज़/जानकारी मंगवाई जाएगी और जांच की जाएगी:

      • (A) गतिविधियों की सच्चाई (Genuineness)

      • (B) अन्य लागू कानूनों का पालन (जो उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए आवश्यक हों)

    2. यदि अधिकारी संतुष्ट है:

      • 5 वर्ष के लिए पंजीकरण देंगे (₹5 करोड़ से कम आय पर → 10 वर्ष)

    3. यदि अधिकारी संतुष्ट नहीं है:

      • आवेदन अस्वीकार कर देंगे और (कुछ मामलों में) पंजीकरण रद्द भी कर सकते हैं

      • अस्वीकृति से पहले सुनवाई का अवसर देना अनिवार्य है

(c)

  • यदि आवेदन item (A) of sub-clause (vi) के तहत है →
    Provisional Registration दिया जाएगा (3 वर्ष के लिए)

    • यह पंजीकरण उस असेसमेंट वर्ष से लागू होगा, जिससे पंजीकरण मांगा गया है।


2. समय-सीमा

  • क्लॉज (a) के मामले में → आवेदन प्राप्ति माह के अंत से 3 माह में आदेश

  • क्लॉज (b) के मामले में → आवेदन प्राप्ति तिमाही के अंत से 6 माह में आदेश

  • क्लॉज (c) के मामले में → आवेदन प्राप्ति माह के अंत से 1 माह में आदेश


3. पंजीकरण रद्द करने की स्थिति (Specified Violations)

यदि पंजीकरण के बाद नीचे दिए गए में से कोई उल्लंघन पाया गया तो पंजीकरण रद्द किया जा सकता है:

  1. आय को ट्रस्ट के उद्देश्यों के अलावा अन्य कार्यों में लगाना

  2. व्यावसायिक आय उद्देश्यों के अनुरूप न होना या अलग बही-खाता न रखना

  3. निजी धार्मिक उद्देश्यों के लिए आय लगाना (जो सार्वजनिक हित में न हो)

  4. नए ट्रस्ट द्वारा किसी एक धार्मिक समुदाय/जाति के हित में आय लगाना

  5. गतिविधियां नकली हों या शर्तों के अनुरूप न हों

  6. अन्य कानून का उल्लंघन (और उस पर आदेश/डिक्री अंतिम हो चुका हो)

  7. आवेदन में गलत या झूठी जानकारी देना


4. पंजीकरण रद्द करने की समय-सीमा

  • नोटिस जारी होने वाली तिमाही के अंत से 6 माह के भीतर आदेश पारित करना होगा।

चरण कार्य विवरण समयसीमा
1 आवेदन दाखिल फॉर्म 10A (नए पंजीकरण/नवीनीकरण/प्रोविजनल से रेगुलर) या 10AB (संशोधन/रिन्यूअल) को ई-फाइल करना
2 दस्तावेज अपलोड ट्रस्ट डीड/पंजीकरण प्रमाणपत्र, पैन, मेमोरेंडम, गतिविधि रिपोर्ट, ऑडिट रिपोर्ट आदि अपलोड करना साथ में फॉर्म जमा करते समय
3 AO/प्राधिकृत अधिकारी द्वारा जाँच आवेदन और दस्तावेजों की जांच, आवश्यक होने पर स्पष्टीकरण/अतिरिक्त दस्तावेज मांगना आवेदन प्राप्त होने से 3 माह के भीतर
4 पंजीकरण जारी / अस्वीकृत अधिकारी संतुष्ट होने पर Form 10AC के तहत पंजीकरण प्रमाणपत्र जारी करेगा, अन्यथा अस्वीकृति आदेश देगा 3 माह के भीतर
5 वैधता अवधि सामान्यतः पंजीकरण की वैधता 5 वर्ष (प्रोविजनल पंजीकरण 3 वर्ष के लिए)
6 नवीनीकरण पंजीकरण समाप्त होने से कम से कम 6 माह पहले फॉर्म 10AB के माध्यम से नवीनीकरण आवेदन
7 संशोधन किसी भी वस्तु, उपविधि, नियम में परिवर्तन होने पर 30 दिन के भीतर फॉर्म 10AB से सूचित करना

  • नया ट्रस्ट/संस्थान पहले प्रोविजनल पंजीकरण (3 वर्ष) लेगा।

  • गतिविधियाँ शुरू होने के बाद रेगुलर पंजीकरण (5 वर्ष) लेना होगा।

  • 12AB पंजीकरण के बिना धारा 11 और 12 के लाभ नहीं मिलेंगे।

  • ऑनलाइन पंजीकरण Income Tax e-Filing Portal के माध्यम से होता है।

धारा 12AB ऑनलाइन पंजीकरण (Income Tax e-Filing Portal पर)

चरणकार्यविवरण
1पोर्टल पर लॉगिनhttps://www.incometax.gov.in पर जाएँ और ट्रस्ट/संस्थान का यूजर आईडी (PAN) और पासवर्ड से लॉगिन करें
2E-File मेन्यू चुनेंटॉप मेन्यू में e-File → Income Tax Forms → File Income Tax Forms पर क्लिक करें
3सही फॉर्म चुनेंखोज बार में Form 10A (नए पंजीकरण/प्रोविजनल/रेगुलर) या Form 10AB (संशोधन/रिन्यूअल) टाइप करें और Apply पर क्लिक करें
4आवेदन प्रकार चुनेंड्रॉपडाउन में से Section 12AB Registration और उपयुक्त ऑप्शन (नया / नवीनीकरण / संशोधन) चुनें
5फॉर्म भरेंसंस्था की बेसिक जानकारी, स्थापना तिथि, पता, ट्रस्ट डीड का विवरण, ऑब्जेक्ट्स आदि भरें
6दस्तावेज अपलोड करेंPDF फॉर्मेट में ट्रस्ट डीड, पंजीकरण प्रमाणपत्र, पैन, गतिविधि रिपोर्ट, ऑडिट रिपोर्ट, उपविधि, बैंक स्टेटमेंट अपलोड करें
7प्रीव्यू और वेरिफाईफॉर्म को चेक करें और फिर EVC (आधार OTP) / DSC (डिजिटल सिग्नेचर) से वेरिफाई करें
8सबमिट करेंसफलतापूर्वक सबमिशन के बाद Acknowledgement Number जेनरेट होगा
9AO द्वारा प्रोसेसिंगAO (Assessing Officer) आवेदन और दस्तावेज जांच करेगा, आवश्यकता होने पर स्पष्टीकरण मांगेगा
10पंजीकरण सर्टिफिकेटसंतुष्ट होने पर Form 10AC में पंजीकरण सर्टिफिकेट जारी किया जाएगा (5 वर्ष वैधता)


  • सभी दस्तावेज स्कैन PDF फॉर्मेट में और 300 KB से कम साइज में होने चाहिए।

  • संस्था का ईमेल और मोबाइल पोर्टल पर अपडेट होना चाहिए, ताकि OTP और नोटिफिकेशन मिलें।

  • समयसीमा का ध्यान रखें: नवीनीकरण आवेदन पंजीकरण समाप्त होने से 6 माह पहले करें।




आयकर अधिनियम की धारा 12, 12A, 12AA और 12AB – संयुक्त सारणी
धारा विषय मुख्य प्रावधान विशेष बिंदु
धारा 12 ट्रस्ट/संस्थान की आय (स्वैच्छिक योगदान) - ट्रस्ट या संस्था को प्राप्त स्वैच्छिक योगदान (जो कॉर्पस हेतु न हो) को धारा 11 के तहत "संपत्ति से आय" माना जाएगा।- धारा 13 की शर्तें लागू होंगी।- ट्रस्ट द्वारा संबंधित व्यक्तियों को मुफ्त/रियायती दर पर दी गई मेडिकल या शैक्षणिक सेवाओं का मूल्य आय मानी जाएगी। - कॉर्पस दान अलग माना जाएगा।- 80G(5C) के तहत गुजरात भूकंप राहत हेतु प्राप्त राशि का गलत उपयोग/अप्रयुक्त रहने पर आय मानी जाएगी।
धारा 12A पंजीकरण हेतु शर्तें - धारा 11 और 12 के लाभ पाने के लिए ट्रस्ट/संस्था को 12AB के तहत पंजीकरण अनिवार्य है।- लेखा-परीक्षण (Audit) की शर्त यदि कुल आय छूट के बिना मूल सीमा से अधिक हो।- रिटर्न समय से दाखिल करना अनिवार्य। - पंजीकरण के लिए आवेदन धारा 12AB में निर्धारित तरीके से।- पूर्वव्यापी पंजीकरण का प्रावधान नहीं।
धारा 12AA पंजीकरण प्रक्रिया (अब अप्रभावी) - पहले ट्रस्ट का पंजीकरण 12AA के तहत होता था।- इसमें जाँच होती थी: (i) ट्रस्ट/संस्था की वस्तुओं की वास्तविकता, (ii) गतिविधियों की प्रामाणिकता।- अब इसे धारा 12AB ने प्रतिस्थापित कर दिया है। - 1 अप्रैल 2021 से नई पंजीकरण प्रक्रिया 12AB में स्थानांतरित।
धारा 12AB नई पंजीकरण प्रक्रिया - 1 अप्रैल 2021 से लागू।- पंजीकरण/नवीनीकरण नियत अवधि के लिए।- प्रारंभिक पंजीकरण 3 वर्ष के लिए, बाद में 5 वर्ष के लिए।- समय-समय पर नवीनीकरण अनिवार्य।- पंजीकरण निरस्त करने के प्रावधान भी शामिल। - सभी पुराने 12A/12AA पंजीकरण धारकों को पुनः पंजीकरण लेना पड़ा।- समयसीमा व प्रपत्र (Form 10A/10AB) अनिवार्य।


Friday, 1 August 2025

GSTAT Procedural Timelines

 GSTAT Procedural Timelines  प्रत्येक प्रक्रिया को विस्तार से समझाया गया है, जिसमें टैक्सपेयर (Appellant) और विभाग (Department) दोनों की समय सीमाएँ शामिल हैं:

1. Filing Appeals (अपील दाख़िल करना)

Taxpayer (Appellant):
ऑर्डर की सूचना प्राप्त होने की तारीख से 3 महीने के भीतर अपील दाख़िल करनी होती है।

Department:
ऑर्डर पारित होने की तारीख से 6 महीने के भीतर अपील दाख़िल की जा सकती है।

2. Condonation of Delay (Appeals) (देरी की क्षमा याचिका - अपील)

Taxpayer / Department:
यदि उचित कारण हो, तो अतिरिक्त 3 महीने तक की देरी को माफ किया जा सकता है।

3. Filing Cross-Objections (क्रॉस-ऑब्जेक्शन दाख़िल करना)

Taxpayer / Department:
नोटिस प्राप्त होने की तारीख से 45 दिनों के भीतर क्रॉस-ऑब्जेक्शन दाख़िल करना आवश्यक है।

4. Respondent's Reply (उत्तरदाता का उत्तर)

Taxpayer / Department (जिन्होंने अपील दाख़िल नहीं की):
उत्तर पत्र (reply) 1 महीने के भीतर दाख़िल करना होता है।


5. Appellant's Rejoinder (अपीलकर्ता का प्रत्युत्तर)

Taxpayer / Department:
उत्तर प्राप्त होने के बाद 1 महीने के अंदर या Bench द्वारा निर्धारित समय के अनुसार प्रत्युत्तर दाख़िल करना है।

6. Rectification Application (संशोधन आवेदन)

Taxpayer / Department:
अंतिम आदेश प्राप्त होने के 1 महीने के भीतर संशोधन आवेदन किया जा सकता है।

7. Case Disposal (मामले का निपटान)

Taxpayer / Department:
यथासंभव 1 वर्ष के भीतर मामले का निपटारा होना चाहिए।


8. Order Pronouncement (आदेश का उच्चारण)

Taxpayer / Department:
सुनवाई की तारीख से 30 दिनों के भीतर आदेश पारित किया जाना चाहिए।

9. Rectification of Orders (आदेशों का संशोधन)

Taxpayer / Department:
मूल आदेश की तारीख से 3 महीने के भीतर संशोधन किया जा सकता है।


10. Amend Proceedings (कार्यवाही में संशोधन)

Taxpayer / Department:
Pleading की समाप्ति की तारीख से 30 दिनों के भीतर संशोधन की अनुमति है।


11. Continuance Application (निरंतरता हेतु आवेदन)

Taxpayer / Department:
संबंधित घटना के घटित होने के 60 दिनों के भीतर आवेदन दाख़िल किया जा सकता है।


12. Rectify Defective Documents (त्रुटिपूर्ण दस्तावेज़ों को सुधारना)

Taxpayer / Department:
दस्तावेज़ वापसी के 7 कार्यदिवस के भीतर, अधिकतम 30 दिनों तक त्रुटियाँ सुधारी जा सकती हैं।



13. Listing Urgent Matters (तत्काल मामलों की सूचीबद्धता)

Taxpayer / Department:
यदि मामला दोपहर 12 बजे से पहले दाख़िल किया गया है तो अगले दिन सूचीबद्ध किया जाएगा।


📝 महत्वपूर्ण सुझाव:

उपरोक्त समय सीमाएँ अनिवार्य हैं, अतः हर कार्यवाही के लिए निर्धारित समय के भीतर फ़ाइलिंग करना अत्यंत आवश्यक है।

यदि किसी कारणवश समय सीमा से चूक हो जाए तो "Condonation of Delay" के लिए आवेदन प्रस्तुत किया जा सकता है, बशर्ते उचित कारण दर्शाया जाए।

Friday, 4 July 2025

FASTag/टोल डेटा से माल की आवाजाही का सत्यापन – क्या यह बिना कानूनी प्रावधान के वैध है या जबरन टोल वसूली का माध्यम?

क्या FASTag/टोल डेटा द्वारा वस्तुओं की आवाजाही का सत्यापन कानून में स्पष्ट प्रावधान के बिना उचित है?
जब FASTag मार्गों पर यात्रा सभी के लिए मुफ्त नहीं है, तो यह एक प्रकार से जबरन टोल शुल्क की वसूली नहीं है क्या? अन्यथा प्राप्तकर्ता को फर्जी खरीद के आरोपों का सामना करना पड़ता है।

आजकल विभाग द्वारा एक बढ़ती प्रवृत्ति देखने को मिल रही है, जिसमें वाहन नंबर FASTag पोर्टल से ट्रेस कर लिए जाते हैं और यदि वाहन की कोई यात्रा रिकॉर्ड में नहीं मिलती (भले ही आंशिक रूप से), तो गुड्स रिसीव न होने की आधार पर ITC अस्वीकार कर दिया जाता है, जबकि वस्तुएं वास्तव में प्राप्त हो चुकी होती हैं। FASTag डेटा से आधारित इस सत्यापन प्रणाली में कई मौलिक समस्याएं हैं:

a) क्या भारत के सभी मार्ग FASTag/टोल से कवर हैं? – नहीं
b) क्या कानून में कहीं लिखा है कि केवल FASTag/टोल मार्ग से ही माल भेजा जाए? – नहीं
c) क्या प्राप्तकर्ता को ट्रांसपोर्टर के FASTag/टोल डेटा तक पहुंच है? – नहीं
d) क्या प्राप्तकर्ता ट्रांसपोर्टर को सिर्फ FASTag मार्ग से चलने के लिए बाध्य कर सकता है? – नहीं
e) क्या सभी राज्य राजमार्गों पर FASTag या ऑटोमेटिक वाहन रिकॉर्डिंग सिस्टम है? – नहीं
f) FASTag मार्गों से चलने पर टोल देना पड़ता है, यदि ट्रांसपोर्टर टोल बचाने हेतु वैकल्पिक मार्ग से जाना चाहे, तो यह उसका वैध अधिकार है।
g) क्या टोल प्लाज़ा पर हर वाहन की जानकारी रिकॉर्ड करना अनिवार्य है? और यदि तकनीकी गड़बड़ी हो जाए या वाहन नंबर गलत दर्ज हो, तो क्या उस आधार पर ITC नकारा जा सकता है? – नहीं
h) यदि प्राप्तकर्ता को FASTag मार्ग का पालन करने के लिए मजबूर किया जा रहा है, तो यह उस पर एक अनावश्यक आर्थिक बोझ है, जो केवल "जेनुइन" माने जाने के लिए उठाना पड़ता है। यदि FASTag मार्ग अनिवार्य है, तो देश की सभी सड़कों को टोल-मुक्त कर दिया जाए।

 पोस्ट माल के मूवमेंट की वैधता जांचने के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह मांग करती है कि:
प्राप्तकर्ता को भी वाहन मूवमेंट का डेटा देखने का अधिकार मिले,
केवल FASTag डेटा पर निर्भरता न हो,
एक वैकल्पिक सत्यापन प्रणाली लाई जाए,
और यह सुनिश्चित किया जाए कि टोल डेटा के आधार पर एकतरफा कार्रवाई से प्राप्तकर्ता को फर्जी खरीद का दोषी न ठहराया जाए।

जब डेटा विभाग के पास है लेकिन प्राप्तकर्ता के पास नहीं, तो यह असमान अधिकार की स्थिति पैदा करता है, जो न्यायसंगत नहीं है।

Monday, 9 June 2025

🛑 जुलाई 2025 से GSTR-3B में बड़ा बदलाव: अब न संपादन संभव, न लापरवाही की गुंजाइश!


🚨 GSTN अपडेट – जुलाई 2025 से GSTR-3B में आउटवर्ड लाइबिलिटी एडिट नहीं होगी
🔒 मुख्य बदलाव क्या है? जुलाई 2025 से GSTR-3B में आपकी आउटवर्ड टैक्स लाइबिलिटी सीधे GSTR-1/IFF से ऑटो-पॉप्युलेट होकर लॉक हो जाएगी। इसका मतलब यह है कि आप GSTR-3B में आउटवर्ड टैक्स लाइबिलिटी को मैन्युअली एडिट नहीं कर पाएंगे। यदि कोई सुधार करना हो (जैसे कि गलत इनवॉइस, छूट या रिटर्न की स्थिति में), तो वो केवल GSTR-1A के माध्यम से ही किया जा सकेगा।

🤝 रिसीपिएंट (ग्राहक) की भूमिका अब निर्णायक यदि रिसीपिएंट क्रेडिट नोट को IMS (Invoice Matching System) में रिजेक्ट कर देता है, तो वह क्रेडिट नोट सप्लायर की आउटवर्ड लाइबिलिटी को कम नहीं करेगा। वह राशि फिर से आउटवर्ड लाइबिलिटी में जुड़ जाएगी और यह GSTR-3B में एडिट नहीं की जा सकेगी।

📌 इसका सीधा असर: अब सप्लायर और ग्राहक को आपस में समन्वय करना होगा, ताकि क्रेडिट नोट समय पर स्वीकार हो जाए। नहीं तो सप्लायर को उस टैक्स का बोझ उठाना पड़ेगा।

🧾 क्या ITC (GSTR-2B) भी लॉक होगा? हाँ, यह संभावना बहुत प्रबल है कि जल्द ही ITC (Input Tax Credit) भी GSTR-2B के अनुसार लॉक कर दिया जाए। यदि कोई इनवॉइस GSTR-2B में नहीं है, तो वह ITC क्लेम नहीं किया जा सकेगा — भले ही बिल मौजूद हो।

🧠 ट्रेड और बिज़नेस पर प्रभाव: व्यापारियों के पास अब कम लचीलापन (flexibility) होगा। गलतियों को सुधारने में समय लगेगा क्योंकि वो अगले महीने ही संभव होगा। हर इनवॉइस की रीयल-टाइम रीकॉन्सिलिएशन आवश्यक हो जाएगी। ग्राहक की सहमति के बिना क्रेडिट नोट बेअसर हो जाएगा।

🧭 मतभेद की संभावना: आपकी सोच एकदम सही दिशा में है। हालांकि कुछ लोग यह मान सकते हैं कि यह बदलाव GST के "Self-assessment" सिद्धांत के खिलाफ है। लेकिन सरकार का उद्देश्य है भ्रष्टाचार और ITC फ्रॉड को रोकना और सिस्टम को पूरी तरह ऑटोमेट करना।