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Thursday 10 January 2019

जीएसटी कोंसिल की 32वीं मीटिंग: जीएसटी कौंसिल की ताजा मीटिंग के फैसले और उनके प्रभाव. CA sudhir Halakhandi

जीएसटी कोंसिल की 32वीं मीटिंग: जीएसटी कौंसिल की ताजा मीटिंग के फैसले और उनके प्रभाव

जीएसटी कौंसिल की 32वीं कौंसिल की मीटिंग 10 जनवरी को संपन्न हो गई और इसमें जैसी कि अपेक्षा थी लगभग उससे के अनुसार छोटे एवं मध्यम उद्योग एवं व्यापार के हित में जो फैसले लिए गए उनका और इसके अतिरिक्त अन्य फैसलों का विवेचन करते हुए आइये प्रयास करे यह जानने का कि इनका प्रभाव कर दाताओं पर क्या पडेगा :-

1. जीएसटी थ्रेशहोल्ड  लिमिट में वृद्धि :-

जीएसटी की थ्रेशहोल्ड लिमिट जीएसटी लगाए जाने के समय 20 लाख रूपये तय की गई थी लेकिन केन्द्रीय उत्पाद शुल्क की सीमा 150 लाख रूपये थी इसलिए इस सीमा को कम माना जा रहा था . स्वयम प्रधानमंत्री इसे 75 तक करने की बात कर चुके थे . मंत्रियों की समिती ने भी इसे बढाने की मांग की था तो यह तो तय था कि यह्याह लिमिट बढ़ेगी और उसी अनुरूप इसे 20 लाख रूपये से बढ़ाकर 40 लाख रूपये कर दिया गया है . यह बढी हुई थ्रेशहोल्ड  केवल “माल” के सम्बन्ध में ही होगी और वह भी केवल राज्य के भीतर माल की बिक्री के सम्बन्ध में  , सेवा क्षेत्र के लिए थ्रेशहोल्ड  20 लाख ही रहेगी . अब माल एवं सेवाओं के लिए जीएसटी अलग-अलग थ्रेशहोल्ड लिमिट होगी .
इससे छोटे व्यापारियों एवं लघु उद्योगों को लाभ होगा लेकिन इसके राजस्व पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में भी सरकार ने जरुर सोचा होगा.

जिन राज्यों (पहाड़ी एवं उत्तरपूर्व के राज्य ) में लिमिट 10 लाख थी वहां 20 लाख हो जायेगी और अन्य राज्यों में जहां  20 लाख लिमिट थी वहां यह सीमा 40 लाख हो जायेगी. इसका राज्यों के राजस्व पर भी पडेगा इसलिए यह भी प्रावधान है कि राज्य चाहे तो इस सीमा को बढाए और नहीं चाहते है तो नहीं बढ़ाये  .लेकिन इसके बारे में राज्य जो भी फैसला हो उसे एक सप्ताह के भीतर बताना होगा .
अब अगर कुछ राज्य बढाते हैं और कुछ पुरानी सीमा पर ही रहते हैं तो “एक देश एक राज्य” का क्या होगा क्यों कि सेवाओं और माल के लिए तो अब थ्रेशहोल्ड तो अलग –अलग हो ही जायेगी और राज्यों में भी यह सीमा अलग- अलग हो जाएगी  .
थ्रेशहोल्ड संबंधी यह फैसला 1 अप्रैल 2019 से लागू होगा.

2.कम्पोजीशन की सीमा 150 तक बढाई गई :-

कम्पोजीशन कर में जाने की अंतिम सीमा 100 लाख रूपये थी जिसे बढ़ा कर 1 अप्रैल 2019 से 150 लाख करने का फैसला किया गया है . सरकार जीएसटी कानून में संशोधन कर इस सीमा को 100 लाख रूपये से बढ़ाकर 150 लाख करने के अधिकार पहले ही ले चुकी है इसलिए इस मीटिंग में व्यवहारिक रूप से 150 लाख करने की पूरी उम्मीद को पूरा किया गया है.
इसके अतिरिक्त कम्पोजीशन डीलर्स को त्रैमासिक कर के साथ त्रैमासिक रिटर्न भी भरना होता था जिसकी जगह अब यह फैसला किया गया है कि अब उन्हें त्रैमासिक कर के साथ वार्षिक रिटर्न भरना होगा.
यह कम्पोजीशन डीलर्स के लिये एक अच्छी खबर है और यह फैसला  भी 1 अप्रैल 2019 से लागू होगा.

3. सेवा क्षेत्र के लिए कम्पोजीशन स्कीम :-

सेवा क्षेत्र के लिए भी एक कम्पोजीशन स्कीम लाये जाने का फैसला किया गया है और इसके तहत 50 लाख रूपये तक के सेवा प्रदाता आयेंगे और उनको बिना कोई इनपुट क्लेम किये 6 प्रतिशत की दर से कम्पोजीशन कर का भुगतान करना होगा.
सेवा क्षेत्र के लिए कम्पोजीशन स्कीम स्वागत योग्य है लेकिन यह कर की दर उम्मीद से ज्यादा है इस सम्बन्ध में कर की दर 3 से 4 प्रतिशत होनी चाहिए लेकिन इसे 6 प्रतिशत की दर पर रख कर इसकी उपयोगिता को काफी कम कर दिया गया है .
यह फैसला भी 1 अप्रैल 2019 से लागू होगा.

4.रियल स्टेट एवं लौटरी से जुड़े जीएसटी मामले :-

इन दोनों मुद्दों पर फैसले लेने से पहले यह मुद्दे रिपोर्ट देनें के लिए “मत्रियों के समूह” को दे दिए है और इस प्रकार इन मुद्दों पर कोई फैसला इस मीटिंग में नहीं लिया गया है.

5.सीमेंट और टायर के मुद्दे पर कोई फैसला नहीं :-

सीमेंट और टायर की जीएसटी दर पर कोई बहस इस मीटिंग में नहीं की गई इस प्रकार इस क्षेत्र को इस मीटिंग में निराश ही किया गया है . जीएसटी कौंसिल को अब इस बारे में जल्दी ही फैसला ले लेना चाहिए क्यों कि ये दोनों ही वस्तुएं उसी कर की दर पर रखी गई है जहाँ “सिन और लक्जरी” वस्तुओं को रखा गया है और जीएसटी के मूल प्रारूप के विरुद्ध है.

6. सरकार डीलर्स को मुफ्त बिलिंग और एकाउंटिंग सॉफ्टवेर देगी :-

यह एक जनोपयोगी फैसला होगा और ऐसा कब होता है और इस सोफ्टवेयर की गुणवत्ता क्या होगी इस पर इस फैसले की उपयोगिता निर्भर करेगी . यदि सरकार एक अच्छी गुणवत्ता वाला सोफ्टवेयर डीलर्स को दे पायी तो यह एक बहुत अच्छी सुविधा डीलर्स के लिए होगी.
जिन डीलर्स ने लेट फीस के साथ रिटर्न भरे हैं उनकी लेट फीस लौटने के बारे में इस मीटिंग में कोई चर्चा नहीं हुई जिससे यह लगता है सरकार इन डीलर्स की एक न्यायसंगत मांग को गंभीरता से नहीं ले रही है .

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