1. धारा 206C(1H) क्या कहती है?
यह प्रावधान वस्तुओं की बिक्री पर 0.1% की दर से TCS (Tax Collected at Source) लागू करता है। यानी, जब कोई विक्रेता 50 लाख रुपये से अधिक मूल्य की वस्तुएं बेचता है, तो उसे इस बिक्री पर 0.1% टीसीएस वसूलना पड़ता है।
2. किन लेन-देन पर TCS लागू होता है?
यदि किसी विक्रेता की किसी खरीदार को की गई कुल बिक्री पिछले वित्तीय वर्ष में 50 लाख रुपये से अधिक रही हो, तो उसे अतिरिक्त बिक्री पर 0.1% टीसीएस वसूलना पड़ता है।
यह प्रावधान निर्यात और कुछ विशेष वस्तुओं (धारा 206C(1), 206C(1F), 206C(1G) के अंतर्गत आने वाले सामान) पर लागू नहीं होता।
3. वित्त विधेयक 2025 में क्या बदलाव प्रस्तावित हैं?
TDS (Tax Deducted at Source) पहले से ही धारा 194Q के तहत लागू है, जिसमें खरीदार को 0.1% की दर से कर काटना पड़ता है।
अभी की स्थिति में, यदि खरीदार ने टीडीएस काट लिया हो, तो विक्रेता को टीसीएस नहीं लगाना होता, लेकिन कई बार विक्रेता को यह जानकारी नहीं होती कि टीडीएस काटा गया या नहीं।
परिणाम: कई बार एक ही लेन-देन पर TDS और TCS दोनों लागू हो जाते हैं, जिससे जटिलता और तरलता (liquidity) की समस्या होती है।
नया बदलाव: 1 अप्रैल 2025 से धारा 206C(1H) पूरी तरह समाप्त कर दी जाएगी, यानी अब TCS की आवश्यकता नहीं रहेगी।
4. यह बदलाव करदाताओं के लिए कैसे फायदेमंद होगा?
✅ अनुपालन बोझ कम होगा – अब विक्रेताओं को अलग से टीसीएस वसूलने और रिपोर्ट करने की जरूरत नहीं होगी।
✅ कैश फ्लो सुधरेगा – टीसीएस वसूली और जमा करने की जटिलता खत्म होगी, जिससे नकदी प्रवाह बाधित नहीं होगा।
✅ बिक्री लेन-देन में स्पष्टता बढ़ेगी – खरीदार और विक्रेता दोनों को पता रहेगा कि सिर्फ टीडीएस लागू होगा और अलग से टीसीएस की जरूरत नहीं है।
5. नया नियम कब से लागू होगा?
👉 1 अप्रैल 2025 से विक्रेताओं को धारा 206C(1H) के तहत TCS वसूलने की जरूरत नहीं होगी।
वित्त विधेयक 2025 के अनुसार, 1 अप्रैल 2025 से वस्तुओं की बिक्री पर TCS समाप्त कर दिया जाएगा। इससे अनुपालन सरल होगा, नकदी प्रवाह सुधरेगा और विक्रेता-खरीदार दोनों को राहत मिलेगी।
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